छत्तीसगढ़ के जगदलपुर से 60 किलोमीटर दूर नक्सलवाद घटनाओं के लिए अतिसंवेदनशील माना जाने वाले सुकमा जिले के तोंगपाल में बाज़ार रोशन है। हर गुरुवार को यहां हाट लगता है जिसमें दूर दराज के आदिवासी आते है। छत्तीसगढ़ को तेलांगना और आंध्रप्रदेश से जोड़ने वाले राष्ट्रीय राजमार्ग 30 पर स्थित तोंगपाल में कुछ सालों पहले नक्सली खुले आम घूमते थे। लाल झंडा और नक्सली राज को यहां देखा जाता था।  लेकिन जब से सीआरपीएफ की 227 बटालियन यहां तैनात की गई है,बस्तर का यह दक्षिणी अंचल पूरा बदल गया है। तोंगपाल में कन्या और बालक हॉस्टल समेत तेंदुपत्ता की मंडी लगती है। यहां कॉलेज भी खुल गया है।  सीआरपीएफ का एक बेस कैम्प कोयला भट्टी में भी है। इसके पूर्व में नजदीक की चंदामेटा की पहाड़िया है जो नक्सलियों की शरण स्थली मानी  जाती थी। इसके पास ही कटे कल्याण की  पहाड़ियां है,जहां हिडमा समेत कई नक्सली के आने का अंदेशा बना रहता है।
नक्सली हमलों के कारण अतिसंवेदनशील समझे जाने वाले दक्षिणी बस्तर के कई इलाकों में सीआरपीएफ सुरक्षा के साथ जनकल्याण को बढ़ावा देने के लिए निरंतर कार्य कर रही है। लोगों का डर दूर करने और खेलों की और आदिवासी युवाओं को आकर्षित करने के लिए तोंगपाल के खेल मैदान में सीआरपीएफ की टीमें क्रिकेट मैच खेल रही है,जहां उप कमांडेंट बृज मोहन राठौर,बबन कुमार सिंह और दुष्यंत गोस्वामी उनका हौसला बढ़ाते नजर आते है। यह इलाका बेहद खतरनाक माना जाता था। 2014 में यहीं से महज एक किलोमीटर दूर नक्सलियों ने आईइडी ब्लास्ट करके 15 सैन्य कर्मियों की हत्या कर दी थी।
सुकमा के नक्सली प्रभाव से ग्रस्त और अतिसंवेदनशील माने जाने  वाली दरभा घाटी,झीरम घाटी,तोंगपाल,कोयला भट्टी और सुदूरवर्ती कुमा कोलेंग में सीआरपीएफ तैनात है। झीरम घाटी में 25 मई 2013 को नक्सलियों ने सलवा जुडूम के संस्थापक महेंद्र कर्मा,पूर्व केन्द्रीय मंत्री विद्याचरण शुक्ल,कांग्रेस के कई वरिष्ठ नेताओं और कार्यकर्ताओं की हत्या कर दी थी।  इस वीभत्स घटना के बाद सीआरपीएफ की 227 बटालियन  को यहां भेजा गया था। 22 अप्रैल 2013 को भोपाल में स्थापित इस बटालियन ने सुकमा में साल 2014 के अंतिम महीने से काम करना शुरू किया। इसके बाद नक्सलियों पर इसका ऐसा खौफ है कि वे पिछले आठ सालों में बटालियन के एक भी जवान पर एक भी हमला करने में न तो कामयाब हो पाए है और न ही सीआरपीएफ ने उन्हें ऐसा कोई अवसर दिया है।
नक्सलियों ने कई बार आईइडी तो लगायें लेकिन चौकस और सतर्क बटालियन के जांबाजों ने समय रहते उन्हें निष्प्रभावी कर दिया।  इस साल जनवरी में एक लाख की इनामी नक्सली मुन्नी समेत कई नक्सलियों को सीआरपीएफ ने मार गिराया था,यही नहीं नक्सली बड़ी संख्या में आत्मसमर्पण करने को मजबूर भी हो रहे है। पिछले महीने 10  नक्सलियों ने आत्मसमर्पण किया था जिसमे पांच हजार से लेकर एक लाख तक के नक्सली थे,जिनसे भारी और विध्वंसक हथियार बरामद किए गये। कमांडर पी.मनोज कुमार इसका श्रेय जवानों को देते है। वे कहते है कि केंद्र और राज्य सरकार का इन इलाकों में विकास को लेकर बेहद अच्छा समन्वय है और सीआरपीएफ को इसका खूब फायदा मिल रहा है। वे बताते है कि हमारा साफ सन्देश है सुरक्षा भी,शांति भी और विकास भी।
हालांकि यह ऐसे इलाके है जहां हर समय नक्सली हमले का खौफ बना रहता है। छत्तीसगढ़ सरकार ने जिन 405 कुख्यात नक्सलियों की पहचान की है,उसमे से अधिकांश इन्हीं इलाकों में प्रभावशील माने जाते है और उन पर 5 हजार से लेकर 25 लाख तक के इनाम घोषित किए गए है। सीआरपीएफ का एक बेस कैम्प सुकमा के सुदूरवर्ती इलाके कुमा कोलेंग में है जिसके दक्षिण पश्चिम दिशा में उड़ीसा के नक्सल प्रभावित मलकानगिरी की  कुख्यात पहाड़ियां है। इन इलाकों में नक्सल की कुख्यात बस्तर डिविजन प्रभावशील रही है। मलकानगिरी के कलेक्टर आरवी कृष्णा का नक्सलियों ने अपहरण फरवरी 2011 में किया था और सुकमा जिले के कलेक्टर एलेक्स पाल मेनन का अपहरण 2012 में नक्सलियों ने किया था।  राष्ट्रीय राजमार्ग 30 की सुरक्षा की जिम्मेदारी भी सीआरपीएफ के पास है। जब से सीआरपीएफ की  227 बटालियन को यहां तैनात किया गया है,कोई भी नक्सली हमला कामयाब नहीं हो सका है। इस राष्ट्रीय राजमार्ग को छत्तीसगढ़ के विकास की जीवन रेखा माना जाता है और नक्सली इसे बाधित करने की फ़िराक में रहते है।  
सीआरपीएफ दुर्गम और खतरनाक नक्सली प्रभाव वाले इलाकों में रोड निर्माण में सुरक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है। इन इलाकों में  मोबाईल की सुविधा उपलब्ध कराना नामुमकिन समझा जाता था क्योंकि टावर को नक्सली उड़ाने की धमकी दे चूके थे,लेकिन             सीआरपीएफ  की मुस्तैदी से नक्सली कामयाब नहीं हो सके और कई टावर लगे जिससे विकास को नई दिशा मिली। यह समूचा इलाका बिजली की सुविधा से महरूम था लेकिन अब यह रोशन हो गया है। सीआरपीएफ ने इस क्षेत्र के बच्चों को पुलिस और सेना में भर्ती होने के लिए जरूरी प्रशिक्षण सुविधा भी उपलब्ध करा रही है,इसके परिणाम सामने आ रहे है और नक्सली इससे परेशान है।
सीआरपीएफ आगे रहकर जनता से मिलती है और उनका सहयोग भी करती है। केंद्र और राज्य सरकार की सहायता से और उनकी योजनाओं को सामान्य जन तक पहुँचाने का काम सीआरपीएफ बखूबी कर रही है। आम ग्रामीण आदिवासियों को चिकित्सा सुविधाएँ,शुद्ध पेयजल की व्यवस्था हेतु वाटर प्यूरी फायर,मनोरंजन और जागरूकता के लिए रेडियो,घर को रोशन करने हेतु सोलर लालटेन,महिलाओं को किचन हेतु कडाई,स्टील के घड़े,मलेरिया जैसी घातक बीमारी से बचाव हेतु मच्छरदानियां आदि सामग्री का वितरण,आम आदिवासी और गरीब बच्चों को कुपोषण से बचाव हेतु विटामिन समेत कई दवाइयों का नियमित वितरण किया जाता है।  सीआरपीएफ इस क्षेत्र के बच्चों को पुलिस और सेना में भर्ती होने के लिए जरूरी प्रशिक्षण सुविधा भी उपलब्ध करा रही है,इसके परिणाम सामने आ रहे है और नक्सली इससे परेशान है। इस इलाके में पिछले 8 सालों में इस क्षेत्र में कोई अप्रिय घटना घटित नहीं हुई। सीआरपीएफ के जनकल्याण जुड़े  कार्यो के कारण लोगों का विश्वास उन पर बढ़ा है।
बस्तर के इलाके में शांति,सद्भावना और विकास की सीआरपीएफ की कोशिशों के बीच धार्मिक आयोजन से यहां रहने वाले लोग अभिभूत है। इस साल नवरात्र पर सुकमा के तोंगपाल  में स्थित सीआरपीएफ ने एक अनोखा आयोजन कर बेटियों की पूजा की,उन्हें उपहार दिए और एक भंडारे का आयोजन किया जिसमें दूर दराज के कई आदिवासी शामिल हुए। नक्सल से प्रभावित  माने जाने वाले छत्तीसगढ़ के अति संवेदनशील बस्तर में लोगों के सर्वांगीण विकास के लिए सीआरपीएफ लगातार कार्य कर रही है। इसके उजले परिणाम सामने आ रहे है। स्कूलों में शिक्षा बिना बाधित चल रही है,लोग बेखौफ होकर अपने काम में जुटे है। आदिवासी आसानी से बाज़ार पहुंचकर तेंदुपत्ता,शहद और महुआ बेचकर आर्थिक रूप से मजबूत हो रहे है। इन इलाकों में सीआरपीएफ के सफल होने का एक प्रमुख कारण इस अर्द्धसैनिक बल का भ्रष्टाचार मुक्त होना भी है। जबकि नक्सल ग्रस्त इलाकों में अन्य संस्थाओं पर भ्रष्टाचार के गम्भीर आरोप लगते रहे है। जाहिर है सीआरपीएफ के कार्यो और योजनाओं से सीख कर अन्य अर्द्धसैनिक बल और संस्थाएं नक्सली क्षेत्रों में काम करें तो निश्चित ही आंतरिक सुरक्षा की इस बड़ी चुनौती से पार पाया जा सकता है।  


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न्यूज़ सोर्स : इस बटालियन से घबराते है नक्सली