विज्ञान में लड़कियाँ और महिलाएँ का अंतर्राष्ट्रीय दिवस
विज्ञान में लड़कियाँ और महिलाएँ का अंतर्राष्ट्रीय दिवस प्रति वर्ष 11 फरवरी को मनाया जाता है, इस दिवस को मनाने के लिए 22 दिसंबर, 2015 को संयुक्त राष्ट्र महासभा के द्वारा संकल्प पारित किया गया था।इस दिन को विज्ञान और प्रौद्योगिकी में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाली महिलाओं और लड़कियों को याद किया जाता है।
विज्ञान में लड़कियाँ और महिलाएँ का अंतर्राष्ट्रीय दिवस को यूनेस्को और संयुक्त राष्ट्र महिला द्वारा लागू किया जाता है, अंतर सरकारी एजेंसियों और संस्थानों के साथ-साथ नागरिक समाज के साथ मिलकर, जिसका उद्देश्य विज्ञान में महिलाओं और लड़कियों को बढ़ावा देना है के द्वारा इस दिवस को मनाया जाता है। इस दिन का उद्देश्य महिलाओं और लड़कियों के लिए विज्ञान में भागीदारी के लिए पूर्ण और समान पहुंच को बढ़ावा देना है।
ऐसे ही कुछ महत्वपूर्ण महिलाओं के विषय आज हम पढ़ेंगे _
डॉ. पूर्णिमा देवी बर्मन
ग्रेटर एडजुटेंट स्टॉर्क (सारस) के अपने संरक्षण कार्य के लिए प्रसिद्ध, डॉ. पूर्णिमा देवी बर्मन असम में एक गैर सरकारी संगठन “अरण्याक” के साथ एक जीवविज्ञानी हैं। पक्षियों के साथ उनका प्रेम संबंध पांच साल की उम्र में शुरू हुआ, जब वे असम में ब्रह्मपुत्र नदी के तट पर अपनी दादी के साथ रहती थीं। उनकी दादी ने उन्हें विभिन्न पक्षी-प्रजातियों और पक्षी-गीतों के बारे में सिखाया, लेकिन उन्होंने 2007 में एक जीवन बदलने वाली घटना देखी।
उन्होंने देखा कि एक किसान एक पेड़ को काट रहा है जिसमें ग्रेटर एडजुटेंट स्टॉर्क का घोंसला और चूजे है। उन्होंने पाया की यह पक्षी अपने अनाकर्षक रूप, हड्डियों और मृत जानवरों को खाने और दुर्गंध फ़लाने के लिए बदनाम है। पक्षी को हरगिला कहा जाता है, जिसका अर्थ हड्डी-निगलने वाला होता है। पूर्णिमाजी ने तब स्थानीय समुदायों को सारस के पारिस्थितिक महत्व के बारे में शिक्षित करने पर ध्यान केंद्रित किया।
पूर्णिमाजी ने अपने घर का कार्यभार और अपने दो बच्चो को भी संभालते हुए, अपने परिवार तथा असम के गांवों के लोगों की सारस और वन्यजीव प्राणी के संरक्षण के बारे में मानसिकता ही बदल दी। उनके काम को विश्व स्तर पर मान्यता प्राप्त है और उन्हें संयुक्त राष्ट्र के चैंपियंस ऑफ द अर्थ पुरस्कार और नारी शक्ति पुरस्कार (भारतीय महिलाओं के लिए सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार) सहित कई पुरस्कार प्राप्त हुए हैं।
इशिका रामाकृष्णन
इशिका रामाकृष्णन “सेंटर फॉर वाइल्डलाइफ स्टडीज” की एक शोधकर्ता हैं, जो मनुष्यों और गैर-मानव प्राइमेट्स के बीच के संबंधों का अध्ययन करती हैं। उनका वर्तमान अध्ययन असम में गिब्बन, लंगूर और मकाक का मनुष्यों के साथ के संबंध पर केंद्रित है। वह अध्ययन कर रही हैं कि भू-उपयोग में परिवर्तन कैसे प्राइमेट्स को प्रभावित कर रहा है, स्थानीय इतिहास और लोककथाओं में उनका जुड़ाव और मनुष्यों की निकटता से उनके व्यवहार में क्या बदलाव आता है।
मुंबई में पली-बढ़ी इशिका को प्रकृति से जुड़ने का ज्यादा मौका नहीं मिला, लेकिन उन्हें वन्य जीवन के बारे में पढ़ने और प्रकृति पर फिल्म देखने का शौक था। घर में अपने पालतू जानवरों के व्यवहार को देखने के बाद उन्हें जानवरों के व्यवहार का अध्ययन करने में दिलचस्पी आई। वह विज्ञान संचार के क्षेत्र में काम करना जारी रखना चाहती हैं, जैसे की बच्चों की किताबें लिखना और पॉडकास्ट बनाना।
सुभादर्शिनी प्रधान
सुभदर्शिनी प्रधान जूलॉजी में एमएससी हैं और वर्तमान में पीएचडी कर रही हैं। उनका अध्ययन ओडिशा के भितरकनिका राष्ट्रीय उद्यान में मैंग्रोव पिट्टा के व्यवहार और संरक्षण पर केंद्रित है। मैंग्रोव पिट्टा एक छोटा, रंगीन पक्षी है जो निवास स्थान के नुकसान से खतरे में है। एक छोटी सी चिड़िया होने के कारण पिट्टा का अध्ययन करना कठिन होता है।
ये महिलाएं उस क्षेत्र में अद्भुत काम कर रही हैं जिसमें किसी भी इंसान के लिए काम करना मुश्किल है। परिवार से दूर वन्य जीवन के अध्ययन में कठिन इलाके को पार करना वास्तव में बहुत चुनौतीपूर्ण है। प्रकृति और वन्य जीवन के प्रति थोड़ा और संवेदनशील होने के लिए इन महिलाओं को हमारे लिए प्रेरणा बनने दें।