नारी निन्दा ना करो, नारी रतन की खान।

 

नारी से नर होत है, ध्रुव प्रह्लाद समान।

 

कबीर दास जी के मत अनुसार नारी की निन्दा नहीं करनी चाहिए। नारी अनेक रत्नों की खान है। इतना ही नहीं नारी से ही पुरुष की उत्पत्ति होती है। ऐसे में ध्रुव और प्रह्लाद नारी की ही देन है।

 

साल 1971 में एक महिला वकील बेल्ला अब्जुग के प्रयास से महिला समानता दिवस पूरे विश्व में 26 अगस्त को मनाया जाता है। हालांकि इस दिवस को मनाने की शुरुआत सर्वप्रथम न्यूजीलैंड में साल 1893 से हुई थी। लेकिन महिलाओं को उनके हक औऱ अधिकारों के प्रति जागरूक करने के लिए यह दिवस सम्पूर्ण विश्व में मनाया जाने लगा। इस दौरान समाज की वंचित और शोषित महिलाओं को आगे बढ़ाने की कोशिश पुरजोर की जाती है। ताकि वह भी समाज की प्रगति में अपना योगदान दे सकें। हालांकि भारत जैसे पुरूष प्रधान देश में प्रारंभ से ही महिलाओं की स्थिति काफी सोचनीय रही है, लेकिन हमारे देश में कई ऐसे महापुरुष हुए। जिन्होंने नारी शोषण और समानता के लिए आवाज बुंलद की।

 

जिनमें प्रमुख है, स्वामी विवेकानंद, महर्षि दयानंद, राजा राम मोहनराय इत्यादि अनेकों महापुरुषों ने नारी समाज के उत्थान के लिए कार्य़ किया। तो वहीं कुछ ऐसी ही वीरागंनाओं से आज हम आपको रूबरू कराने जा रहे हैं, जिन्होंने यह साबित कर दिखाया कि यदि नारी चाहे तो वह कुछ भी कर सकती है। बशर्तें वह चाहे रण भूमि हो या सियासत के गालियारे। इस प्रकार कहा जा सकता है कि नारी की मह्ता पृथ्वी ही नहीं बल्कि तीनों लोकों में स्वीकार की गई है।.

 

Itihas इतिहास के झरोखे से

 

 

रानी अहिल्याबाई होल्कर

 

ईश्वर ने मुझे जो जिम्मेदारी सौंपी है, मुझे उसे निभाना है। साथ ही हर उस कार्य़ जिसके लिए मैं जिम्मेदार हूं। मुझे उसका जवाब ईश्वर को देना है।

 

 

ऐसे महान विचारो वाली  

बच्चों और महिलाओं की स्थिति को लेकर हमेशा चिंतन करने वाली महारानी अहिल्याबाई होल्कर ने सदैव नारी समाज के उत्थान के लिए कार्य किया। साथ ही धार्मिक संस्कारों से ओत-प्रोत रानी अहिल्याबाई ने देश के विभिन्न स्थानों और नगरों में मंदिरों, धर्मशालाओं और अन्नसत्रों का निर्माण करवाया। साथ ही यातायात के विकास के लिए कई जगहों पर सड़कों और रास्तों का निर्मांण कराया। इतना ही नहीं 1777 में विश्व प्रसिद्ध काशी विश्वनाथ मंदिर की स्थापना का श्रेय भी महारानी अहिल्याबाई होल्कर को दिया जाता है।

 

 

सावित्री बाई फूले

 

भारत की प्रथम शिक्षिका और समाज सुधारिका के रूप में जाने जानी वाली सावित्री बाईला ने महिला अधिकारों के प्रति आवाज बुलंद की। साथ ही बालिकाओं के लिए अलग विद्यालय की स्थापना का श्रेय इन्हें दिया जाता है।

 

इतना ही नहीं स्कूल जाते वक्त जब लोग उनपर कीचड़ और पत्थर फेंका करते थे तो वह स्कूल पहुंचने के बाद अपनी साड़ी बदल लिया करती थी। ऐसे में हमें उऩके चरित्र से निरंतर प्रयासरत रहने की प्रेरणा भी मिलती है। तो वहीं वह एक आदर्श कवियत्री के रूप में भी जानी जाती हैं। मानवता का संदेश देने वाली सावित्री बाई फूले का निधन प्लेग मरीजों की देखभाल के दौरान हो गया था। लेकिन उनके कार्य़ और विचार आज भी महिलाओं को उनके हक और अधिकारों के लिए प्रेरित करते हैं।

 

आधुनिकता की दहलीज तक 

 

भारत देश में लिंग की असमानता का मुद्दा हमेशा से रहा है। महिलाओं को हमेशा से ही अपने सपनों को पूरा करने की आजादी नहीं थी। लेकिन फिर भी इन महिलाओं ने ऐसे व्यवसायों को चुना जिसमें केवल पुरुष ही जाया करते थे। इन महिलाओं ने अपने कार्य की उत्कृष्टता से सबको हैरत में डाला और अपना नाम इतिहास के पन्नों पर दर्ज कराया -

 

फातिमा बीबी

1989 में भारत को अपनी पहली महिला सुप्रीम कोर्ट की न्यायाधीश मिली 

 

किरण बेदी

भारत की पहली महिला आईपीएस अधिकारी किरण बेदी सबसे ज्यादा चर्चित महिला हैं

 

पुनीता अरोड़ा

पुनीता अरोड़ा भारतीय सर्वोच्च सशस्त्र बल की लेफ्टिनेंट जनरल और बाद में भारतीय नौसेना की वाइस एडमिरल नियुक्त होने वाली पहली भारतीय महिला बनी

 

 

किरण मजूमदार-शॉ

पहली एक बिलियन नेटवर्थ वाली महिला बिजनेस वुमन बनीं किरण मजूमदार शॉ

 

 

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महिला दिवस और 8 मार्च का इतिहास 

 

आज से 115 साल पहले 1908 में करीब 15,000 महिलाएं न्यूयॉर्क की सड़कों पर उतर आई थीं। उनकी मांग थी कि नौकरी का समय कुछ घंटे कम हो और उनकी सैलरी काम के हिसाब से दी जाए। उन्होंने वोट देने का अधिकार भी मांगा। जब उनकी बुलंद आवाज सरकार तक पहुंची तब एक साल बाद 1909 में अमेरिका की सोशलिस्ट पार्टी ने महिला दिवस मनाने का ऐलान किया।

 

न्यूयार्क की सड़क पर जिस दिन महिलाएं उतरीं और अपने हक की मांग की, उस दिन की तारीख 8 मार्च थी। इसी के अगले साल सोशलिस्ट पार्टी ने इस दिन को महिला दिवस के तौर पर मनाना शुरू किया। इतिहास में एक कहानी और आती है कि 1917 में जब पहला विश्व युद्ध चल रहा था, तब रूस की महिलाओं ने ब्रेड और पीस को लेकर हड़ताल की शुरुआत की। उनकी इस मांग के आगे सम्राट निकोलस को झुकना पड़ा और उन्होंने अपने पद से त्याग दे दिया और इसी के साथ महिलाओं को वोट का अधिकार मिला। उनके इसी प्रोटेस्ट को देखते हुए यूरोप में भी महिलाओं ने 8 मार्च को पीस ऐक्टिविस्ट्स के समर्थन में रैलियां निकाली।

 

1975 में अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस को मान्यता मिली

 

अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस की शुरुआत भले ही 1909 में हो गई थी लेकिन संयुक्त राष्ट्र से इसे 8 मार्च, 1975 में मान्यता मिली। इसके बाद से आधिकारिक तौर पर 8 मार्च को इस दिन को मनाया जाने लगा। हर साल एक थीम पर महिला दिवस मनाया जाता है।

 

इंटरनेशनल वुमेंस डे 2023 की थीम

 

पहली बार इंटरनेशनल वुमेंस डे का थीम थी- ‘सेलिब्रेटिंग द पास्ट, प्लानिंग फॉर द फ्यूचर’...इसके बाद से हर साल एक स्पेशल थीम के पर इस दिन को सेलिब्रेट किया जाता है। इस साल अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस की थीम ‘एम्ब्रेस इक्विटी’ (Embrace Equity).है. जिसका मतलब है एक ऐसी समावेशी दुनिया का निर्माण जिसमें लैंगिक समानता (Gender Equality) पर फोकस करना हर समाज के डीएनए का हिस्सा होना चाहिए। हर किसी को सक्रिय तौर पर इसका सपोर्ट करना चाहिए।

न्यूज़ सोर्स : इतिहास के झरोखे से आधुनिकता की देहलीज तक - महिला दिवस विशेषांक