भोपाल । राजधानी भोपाल में गणेशोत्सव की तैयारियां जोरों पर है। 19 सितम्बर को विघ्नहर्ता की प्रतिमाएं विराजित होंगी। दस दिनी त्योहार की पूरे शहर में धूम रहेगी। लोग अपने घर-दफ्तर और पंडाल में आकर्षक प्रतिमाएं स्थापित करेंगे। शहर में इस बार करीब तीन हजार से अधिक स्थानों में गजानन विराजित होंगे। इनकी तैयारियां जोरों पर चल रही हैं। इस बार शहर के मूर्तिकार गणेश जी की तरह-तरह की सुंदर, कलात्मक व बड़ी-बड़ी प्रतिमाएं बना रहे हैं। माता-पिता के साथ, बाल स्वरूप व दक्षिणावर्ती सूंड वाले गणेश जी की प्रतिमाएं अधिक डिमांड में हैं। शहर से मूर्तियां बाहर भी जाएंगी तो कुछ पंडालो में बाहर से भी सुंदर प्रतिमाएं आएंगी। वहीं पर्यावरण के लिए घातक पीओपी की मूर्तियां प्रतिबंध के बावजूद बाजार में नजर आ रही हैं।
मूर्तिकारों को इस बार विभिन्न आकार की गनेश प्रतिमाएं बनाने के ऑर्डर मिले हैं। इस बार 5 फीट या उससे ऊंची मूर्तियों के ऑर्डर अधिक हैं। परम्परागत स्वरूप में प्रतिमाओं का निर्माण अधिक किया जा रहा है। दक्षिणावर्ती सूंड वाले गणेश जी की प्रतिमाएं लोग अधिक बनवा रहे हैं। उन्होंने बताया कि इस बार 501 रु से लेकर 50 हजार रु तक कीमत की मूर्तियां बनी हैं।
बहुत कम लोग ही मिट्टी और प्लास्टर आफ पेरिस (पीओपी) की प्रतिमा में फर्क कर पाते हैं। कलाकार मुनाफा अधिक बनाने के लिए पीओपी का इस्तेमाल करते हैं। जबकि पर्यावरण के लिहाज से पीओपी खतरनाक है। इससे जहां नदी-तालाब प्रदूषित होते हैं वहीं, मिट्टी की प्रतिमा निर्माण में वक्त और लागत अधिक लगने की वजह से कई मूर्तिकार इससे परहेज करते हैं। मूर्तिकार बताते हैं कि इस बार भी जिले के आसपास लगे इलाकों और बाहर के जिलों से पीओपी की प्रतिमाएं बिकने आ रही हैं। सस्ती होने के चलते लोग इनकी ओर अधिक आकर्षित हो रहे हैं। लेकिन पर्यावरण विदों व धर्माचार्यों ने पीओपी की प्रतिमाएं न स्थापित करने की सलाह दी है।
पीओपी की बनी प्रतिमा को विक्रेता मूर्तिकार अपनी कला से मिट्टी का बताने से भी नहीं चूकते हैं। इसके लिए पीओपी की प्रतिमा के कुछ भाग में मिट्टी का इस्तेमाल कर उसकी पहचान छुपाने की कोशिश की जा रही है। एक मूर्तिकार ने बताया कि अधिकारियों के पास पीओपी की प्रतिमा पहचान के लिए न कोई औजार है ना ही अनुभव। कई दुकानकार पीओपी की प्रतिमा को चाक मिट्टी की बताकर गुमराह करते हैं, जबकि असल में पीओपी के जरिए प्रतिमा बनाई जाती हैं। जांच अधिकारी सिर्फ खानापूर्ति करके मूर्तिकारों से मिलकर लौट जाते हैं। वहीं शहर के अंदर जिन दुकानों में पीओपी की प्रतिमा का स्टाक आता है, वहां कोई अधिकारी कार्रवाई करने के लिए नहीं पहुंचता है।