सैन फ्रांसिस्को । चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग और अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने बुधवार देर रात कैलिफोर्निया में मुलाकात की। इस मुलाकात का मकसद चीन-अमेरिका में जारी तनाव को कम करना था। दोनों नेता साल भर के बाद मिले हैं। ये मुलाकात कितनी अहम है इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि इस साल शी जिनपिंग ने सिर्फ तीन विदेश दौरे किए हैं। वो पहले दौरे पर रूस, दूसरे पर साउथ अफ्रीका गए। वो तीसरा दौरे पर अब अमेरिका में हैं।
बाइडेन और शी जिनपिंग की मुलाकात सैन फ्रांसिस्को में चल रही एशिया-पैसेफिक इकोनॉमिक को-ऑपरेशन समिट के दौरान हुई है। दोनों नेताओं की मीटिंग के बाद चीन और अमेरिका फिर से मिलिट्री कम्युनिकेशन शुरू करने पर सहमत हुए हैं। मीटिंग के दौरान दोनों देशों के मतभेद भी साफ-साफ दिखाई दिए। द्विपक्षीय बैठक के दौरान जिनपिंग ने कहा- अमेरिका ताइवान को हथियार देना बंद करे। हम ताइवान को चीन में मिलाकर रहेंगे। जिनपिंग ने कहा- चीन अमेरिका को पछाडऩा या उसकी जगह नहीं लेना चाहता है। लेकिन इसके लिए जरूरी है कि अमेरिका चीन को दबाना बंद करे।
जिनपिंग ने आगे कहा- धरती इतनी बड़ी है कि यहां दोनों सुपर पावर रह सकती हैं। हमारा देश अमेरिका से अलग है, लेकिन हम इस फर्क के साथ भी ऊपर उठ सकते हैं। चीन और अमेरिका जैसे 2 बड़े देशों के लिए एक-दूसरे से मुंह फेरना विकल्प नहीं हो सकता। दोनों देशों में संघर्ष और टकराव के खतरनाक परिणाम हो सकते हैं।
 जिनपिंग कम्युनिस्ट देश चलाने वाले तानाशाह
जिनपिंग से मुलाकात के बाद बाइडेन ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस की। इस दौरान एक रिपोर्टर ने बाइडेन से पूछा- क्या आप अब भी शी जिनपिंग को तानाशाह मानते हैं? इसके जवाब में बाइडेन ने कहा- वो तानाशाह हैं क्योंकि वो एक कम्युनिस्ट देश को चलाते हैं। बाइडेन ने मीडिया से कहा- मेरी जिनपिंग से बहुत अच्छी बातचीत हुई। मैंने ताइवान मुद्दे पर फिर से अमेरिका का रुख साफ कर दिया। हम वन चाइना पॉलिसी का समर्थन करते हैं और ये कभी नहीं बदलने वाला है। इससे पहले बाइडेन ने जिनपिंग के साथ मुलाकात के दौरान कहा- मैं हमारी बातचीत को महत्व देता हूं क्योंकि मुझे लगता है कि ये सबसे ज्यादा जरूरी है कि हम एक-दूसरे को साफ तौर पर समझें। यहां एक लीडर दूसरे लीडर से बात कर रहा है, इसलिए हमारे बीच कोई गलतफहमी नहीं हो सकती। हमें ये तय करना होगा कि हमारा कॉम्पिटिशन संघर्ष में न बदल जाए। इस पर जिनपिंग ने कहा- चीन के एक्सपोर्ट पर कंट्रोल और एकतरफा प्रतिबंध लगाकर अमेरिका हमारे हितों को नुकसान पहुंच रहा है। चीन की साइंस और टेक्नोलॉजी को दबाकर उसके विकास को रोका जा रहा है।