भोपाल  ।    मध्यप्रदेश की राजनीति में इन दिनों फिर भूचाल की स्थिति बन गई है। छह दशक से कांग्रेस की राजनीति से जुड़े कमलनाथ के भाजपा में जाने की अटकलें जोर मार रही हैं। सबकी नजरें इस पर टिकी हैं।  यूं तो मामला कई दिनों से सुर्खियों में है, पर बीते दिनों भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व से कमलनाथ और उनके बेटे नकुलनाथ की मुलाकात की अटकलों के बाद मामला गर्मा गया।  शनिवार को अचानक दिल्ली जाने के फैसले से पूरे देश की निगाहें इस घटनाक्रम पर अटक गई हैं। चर्चा तब और तेज हो गई जब नकुलनाथ और उनके समर्थकों ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के बायो से कांग्रेस हटा दिया। कमलनाथ भाजपा में जाएंगे या नहीं ये तो वक्त के साथ पता चल ही जाएगा, पर उनके भाजपा में जाने पर प्रदेश की राजनीति पर क्या फर्क पड़ेगा, हम उस पर बात करते हैं। 

भाजपा को नफा या कांग्रेस को नुकसान

कमलनाथ यदि भाजपा में शामिल होते हैं तो यकीनन प्रदेश कांग्रेस के लिए बहुत बड़ा झटका होगा। इसका फायदा भाजपा को मिलेगा। क्योंकि कमलनाथ के साथ कांग्रेस के कई विधायक और कई नेता भी भाजपा का दामन थामेंगे। इससे आगामी लोकसभा की तैयारी में लगी भाजपा को सीधा फायदा होता नजर आ रहा है, वहीं कांग्रेस को नए सिरे से जमावट करनी होगी। कहा जा रहा है कि कमलनाथ छिंदवाड़ा से अपने सांसद बेटे नकुल नाथ के साथ भाजपा में शामिल होने वाले हैं। हालांकि, उनकी या उनके किसी समर्थक की तरफ से इस पर कोई स्पष्टीकरण नहीं आया है।राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो कमलनाथ को भाजपा आगामी लोकसभा में मैदान में उतार सकती है। वहीं केंद्र में मंत्री पद से भी नवाजा जा सकता है। आगामी लोकसभा में क्लीन स्वीप की मंशा लेकर मैदान में खड़ी भाजपा इसे बेहतर तरीके से भुनाएगी। कमलनाथ बीते छह सालों से प्रदेश की राजनीति में सक्रिय रहे हैं। उनके समर्थकों की संख्या में लगातार बढ़ी है। उनके भाजपा में जाने से कांग्रेस को निश्चित ही बड़ा झटका लगेगा। 

भाजपा में जाने की क्या है वजह?

सारी उठापटक के बीच हर कोई ये जानने को भी बेताब है कि आखिर कमलनाथ को क्या जरूरत आन पड़ी कि वे भाजपा में जाएं। इसकी कई वजह भी हैं। मध्य प्रदेश विधानसभा चुनावों में कांग्रेस ने कमलनाथ के नेतृत्व में चुनाव लड़ा। प्रदेश की 230 में से भाजपा ने 163, कांग्रेस ने 66 और भारत आदिवासी पार्टी ने एक सीट जीती थी। कांग्रेस ने विधानसभा चुनावों में हार का ठीकरा कमलनाथ पर फोड़ दिया। उन्हें इसके लिए जिम्मेदार ठहराया गया। अन्य नेताओं ने भी उन्हें अलग-थलग कर दिया। इसके बाद कांग्रेस ने एकाएक अपना प्रदेश अध्यक्ष बदल दिया। राहुल गांधी के करीबी रहे जीतू पटवारी को प्रदेश कांग्रेस की बागड़ोर सौंप दी गई। इसके बाद कहा जा रहा था कि कमलनाथ राज्यसभा का चुनाव लड़कर केंद्रीय राजनीति का हिस्सा बन सकते हैं, पर पार्टी ने दिग्विजय सिंह के समर्थक अशोक सिंह को राज्यसभा का उम्मीदवार बना दिया। कुल मिलाकर कहा जाने लगा कि कमलनाथ को प्रदेश के नए नेतृत्व ने एक तरफ कर दिया, जिससे कमलनाथ खफा हैं।