उड़ीसा के पुरी में स्थित जगन्नाथ मंदिर भारत के चार पवित्र धामों में से एक है। जी हाँ और यहां हर साल आषाढ़ में भव्य रथयात्रा निकाली जाती है। आप सभी को यह भी बता दें कि इस साल इस रथ यात्रा की शुरुआत 01 जुलाई से होगी, लेकिन रथ यात्रा से पहले भी कुछ परम्पराएं निभाई जाती हैं, जिनकी शुरुआत हो चुकी है।

जी हाँ और इन्हीं परम्पराओं को निभाते हुए ज्येष्ठ पूर्णिमा तिथि पर जगन्नाथ मंदिर में भगवान जगन्नाथ, बहन सुभद्रा और बड़े भाई बलराम को स्नान कराया गया। आपको बता दें कि बीते 14 जून 2022 को ज्येष्ठ पूर्णिमा तिथि थी और इसी दिन तीनों को स्नान करवाया गया। वहीं स्नान के बाद पारंपरिक रूप से तीनों देवों को बीमार माना जाता है और उन्हें राज वैद्य की देखरेख में एकांत में स्वस्थ होने के लिए एक कमरे में रखा जाता है। आपको पता हो इस दौरान उन्हें काढ़ा आदि का भोग लगाया जाता। जी दरअसल ऐसा माना जाता है कि राज वैद्य की तरफ से दिए गए आयुर्वेदिक दवा से वे 15 दिनों में ठीक हो जाते हैं और फिर रथ यात्रा शुरू की जाती है। अब हम आपको बताते हैं इस परंपरा के बारे में विस्तार से...

15 दिन का एकांतवास क्यों?- कहा जाता है भगवान जगन्नाथ, बलभद्र जी और सुभद्रा जी को 108 घड़ों के जल से स्नान कराया जाता है। जी दरअसल इस स्नान को सहस्त्रधारा स्नान के नाम से जाना जाता है। मान्यता है कि 108 घड़ों के ठंडे जल स्नान के कारण जगन्नाथ जी, बलभद्र जी और सुभद्रा जी तीनों बीमार हो जाते हैं। ऐसे में वे एकांतवास में चले जाते हैं और जब तक वे तीनों एकांतवास में रहेंगे तब मंदिर के कपाट नहीं खुलेंगे। एकांतवास से आने के बाद वे भक्तों को दर्शन देंगे। कहा जाता है स्नान और बीमार होने के बाद जब 15 दिनों के लिए जब भगवान जगन्नाथ बड़े भाई बलराम और छोटी बहन सुभद्रा एकांतवास में रहेंगे, तो इस अवधि के दौरान भक्त देवताओं को नहीं देखा सकते। वहीं इस समय भक्तों के दर्शन के लिए उनकी छवि दिखाई जाती है और ठीक होने के बाद जब तीनों बाहर आते हैं तब भव्य यात्रा निकाली जाती है।

इसी के साथ इस रथयात्रा में देश के कोने-कोने से लोग पहुंचते हैं। आपको बता दें कि जगन्नाथ मंदिर में भगवान श्री कृष्ण जगन्नाथ के नाम से विराजमान हैं। यहां उनके साथ उनके ज्येष्ठ भ्राता बलराम और बहन सुभद्रा भी हैं। पुरी में भगवान जगन्नाथ के अलावा बड़े भाई बलराम और बहन सुभद्रा की प्रतिमाएं काष्ठ की बनी हुई हैं। जी हाँ और जगन्नाथ रथ यात्रा का महत्व जगन्नाथ पुरी धाम को मुक्ति का द्वार कहा गया है। जी दरअसल आषाढ़ शुक्ल के द्वितीया तिथि को भगवान जगन्नाथ अपने भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ तीन विशाल रथ पर सवार होते हैं अपने धाम से निकल कर गुंडिचा मंदिर जाते हैं, उसे उनकी मौसी का घर कहा जाता है। यहाँ पर भगवान जगन्नाथ साथ दिनों तक रहते हैं।