रायपुर : इस साल रक्षाबंधन में भाईयों की कलाई के साथ स्व-सहायता समूहों की दीदीयों का रक्षाबंधन का त्यौहार भी खुशियों से रंगा होगा। भाईयों की कलाईयों में जहां छत्तीसगढ़ की माटी की सौंधी महक लिए धान, चावल, बीज और बांस की राखियां सजेंगी। वहीं इन राखियों की बिक्री से हुई आय से महिला समूह की कई दीदीयों के घरों में खुशियां भी आएंगी। हर साल की तरह इस साल भी छत्तीसगढ़ में महिला स्व-सहायता समूह की महिलाओं द्वारा बड़ेे प्रेम और उत्साह से भाईयों के लिए मनमोहक और आकर्षक राखियां बनाई गई हैं। मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल की पहल पर शुरू हुए सी-मार्ट में इन राखियों की बिक्री से उन्हें अच्छी आय भी हुई है।
महासमुंद जिले में छत्तीसगढ़ राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन बिहान अंतर्गत समूह की 140 से अधिक दीदीयों ने बांस, धान, रखिया बीज, मोती, रुद्राक्ष, ऊन और सूती धागे से राखियां तैयार की है। इसे उन्होंने सौम्य बंधन का नाम दिया है। इसे शहरी, ग्रामीण बाजारों के साथ-साथ सी-मार्ट में भी विक्रय किया जा रहा है। जिला मुख्यालय सहित सभी ब्लॉक मुख्यालयों में इन महिलाओं को बिक्री के लिए स्टॉल भी उपलब्ध कराये गए है। इसके अलावा स्थानीय हाट बाजारों सहित पड़ोसी जिलो में भी इनकी अच्छी माँग है। स्थानीय बाजार में समूह द्वारा बनाई गई राखीं को 10 रूपए से लेकर 50 रूपए तक बेचा जा रहा हैं।

का त्यौहार भी होगा रंगीन

राखी से बिहान दीदीयों को 1 लाख रूपए की आय
रक्षाबंधन का त्यौहार समूह की महिलाओं के लिए एक नई सौगात लेकर आया है। राजनांदगांव जिले में स्वीप योजना के तहत राखी निर्माण का प्रशिक्षण लेकर लगभग 80 समूहों की 100 से अधिक महिलाएं राखी निर्माण और विक्रय कर रही हैं। इस वर्ष बिहान दीदीयों ने मार्केट के डिमांड के अनुरूप खूबसूरत, फैंसी राखियां बनाई हैं। अब तक महिलाओं ने 35 हजार से अधिक राखियाँ बनाई है, जिनमें से 17 हजार राखियों का विक्रय किया जा चुका है। इससे उन्हें 1 लाख रूपए से अधिक की आय हुई है।

आदिवासी दीदियों ने बनाई राखियां - आर्थिक रूप से हुई सशक्त
दंतेवाड़ा जिले की पार्वती महिला ग्राम संगठन चितालंका, मां दंतेश्वरी संकुल संगठन बालूद, किसान महिला संकुल संगठन भांसी, एकता महिला ग्राम संगठन चितालंका की स्वसहायता समूह की महिलाओं ने भी रक्षाबंधन के त्यौहार के लिए आकर्षक राखी तैयार की हैं। मां दंतेश्वरी संकुल संगठन बालूद की सदस्य ग्राम चितालुर की निवासी श्रीमती सीमा ने बताया कि महिलाओं द्वारा धान, चावल, मोती, ऊन, रक्षा धागे से अलग-अलग डिजाइन की फैंसी एवं आकर्षक रंग-बिरंगी राखियां तैयार की गई है। इससे उन्हें रोजगार मिल रहा है। अन राखियों को कलेक्ट्रेट परिसर सहित सी-मार्ट में भी बेचा जा रहा है। पिछले साल समूह की दीदियों को लगभग 1 लाख 20 हजार का मुनाफा हुआ था। इस वर्ष भी उन्हें अच्छी आमदनी की आशा है। स्थानीय बाजार में भी इन राखियों की काफी मांग है।