होलाष्टक होली से आठ दिन पहले लग जाते हैं। शास्त्रों में इन 8 दिनों को अशुभ माना गया है।

इसलिए इस अवधि में शुभ कार्य करने की मनाही होती है। हिंदू पंचांग के अनुसार फाल्गुन शुक्ल पक्ष की अष्टमी से फाल्गुन शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तक की अवधि को होलाष्टक कहा जाता है। इस बार होलाष्‍टक 10 मार्च से लग रहे हैं और 18 मार्च को इसका समापन होगा। होलाष्टक शुरू होने के साथ ही होलिका दहन के लिए लकड़ियां और दूसरी चीजों को एकत्रित करने का काम भी आरंभ होता है।

कब लग रहा है होलाष्टक?

इस साल 10 मार्च से होलाष्टक लग जाएंगे, जो 18 मार्च तक रहेंगे। होली 19 मार्च को खेली जाएगी।

होलाष्टक में होती है इन कार्यों की मनाही

होलाष्टक में मुख्य तौर पर सभी प्रकार के शुभ और मंगल कार्य नहीं किए जाते हैं। ये वो समय भी होता है जब होलिक दहन के लिए तैयारी शुरू की जाती है। एक स्थान चुना जाता है और लड़कियों सहित अन्य चीजों को वहां जलाने के लिए जमा किया जाने लगता है।

ऐसे में होलाष्टक के दौरान विवाह का मुहूर्त नहीं होता है। साथ ही नए घर में प्रवेश या कहें कि गृह प्रवेश नहीं करना चाहिए। भूमि पूजन भी नहीं करने की परंपरा है। नवविवाहिताओं को इन दिनों में मायके से ससुराल या ससुलार से अपने मायके नहीं जाना चाहिए।

किसी भी प्रकार का हवन, यज्ञ कर्म भी इन दिनों में नहीं किये जाते हैं। होलाष्टक के दौरान किसी भी संस्कार को संपन्न नहीं करना चाहिए। हालांकि, दुर्भाग्यवश अगर किसी की मौत होती है तो अंत्येष्टि संस्कार के लिये शांति पूजन करवाया जाता है।

इसलिए होलाष्टक में नहीं किए जाते हैं शुभ कार्य

होलाष्टक से जुड़ी एक कथा के अनुसार भक्त प्रहलाद की भक्ति से नाराज होकर हिरण्यकश्यप ने होली से पहले के आठ दिनों में उन्हें अनेक प्रकार के कष्ट और यातनाएं दीं। इसलिए इसे अशुभ माना गया है।

वहीं, एक अन्य कथा के अनुसार जब कामदेव ने प्रेम बाण चलाकर भगवान शिव की तपस्या को भंग किया तो वे क्रोधित हो गए। इसके बाद शिव ने क्रोध में अपना तीसरा नेत्र खोल दिया जिससे कामदेव भस्म हो गए। कामदेव के भस्म होते ही पूरी सृष्टि में शोक फैल गया।

इसके बाद अपने पति को जीवित करने के लिए कामदेव की पत्नी रति ने भगवान शिव से प्रार्थना की। आखिरकार रति की प्रार्थना से इससे भगवान शिव प्रसन्न हो हुए और कामदेव को पुर्नजीवित कर दिया। इसके बाद पूरी सृष्टि में एक बार फिर चहल-पहल और खुशियां फैल गई।