भोपाल  ।   मध्य प्रदेश में महापौर का चुनाव सीधे मतदाताओं से कराए जाने की व्यवस्था लागू करने से पार्षदों का महापौर को वापस बुलाने का अधिकार (राइट टू रिकाल) भी बहाल होगा। यदि तीन चौथाई पार्षद महापौर के प्रति अविश्वास प्रकट करते हुए हस्ताक्षरयुक्त आवेदन देते हैं तो सरकार की सिफारिश पर राज्य निर्वाचन आयोग खाली कुर्सी-भरी कुर्सी का चुनाव कराएगा। इसमें जनता मतदान कर तय करेगी कि महापौर पद पर बना रहेगा या नहीं। कमल नाथ सरकार ने अप्रत्यक्ष प्रणाली लागू करके पार्षदों से यह अधिकार छीन लिया था। हालांकि इस आधार पर चुनाव नहीं हो सका। नगरीय विकास एवं आवास विभाग के अधिकारियों ने बताया कि कांग्रेस सरकार के समय अधिनियम में जो संशोधन किया था, उसमें अप्रत्यक्ष प्रणाली थी। पार्षद के बीच से ही महापौर चुना जाना था इसलिए वापस बुलाने के लिए मतदान कराए जाने की व्यवस्था नहीं थी। यदि पार्षदों का महापौर के प्रति विश्वास नहीं रहता तो वे अपने बीच से ही दूसरा महापौर चुन सकते थे लेकिन अब प्रत्यक्ष प्रणाली में यह अधिकार जनता के ही पास रहेगा। पार्षद यदि अविश्वास प्रस्ताव लाते हैं और वह विधिसम्मत पाया जाता है तो सरकार राज्य निर्वाचन आयोग से महापौर को वापस बुलाने के संबंध में चुनाव कराने की सिफारिश करेगी। इसके लिए अधिनियम में प्रविधान भी किया जाएगा।

दो साल का कार्यकाल पूरा होना जरूरी

महापौर को वापस बुलाने के लिए कम से कम दो साल का कार्यकाल पूरा होना जरूरी होगा और उसका कार्यकाल छह माह शेष रहने से पहले ही अविश्वास प्रस्ताव लाया जा सकता है। इसके लिए कलेक्टर को प्रस्ताव देना होगा। कलेक्टर इसका परीक्षण करने के बाद शासन को सिफारिश करेगा। यदि संबंधित निकाय के मतदाता खाली कुर्सी के पक्ष में मतदान करते हैं तो महापौर को पद छोड़ना पड़ेगा और यदि भरी कुर्सी के पक्ष में मतदान होता है तो वह पद पर बना रहेगा।

अध्यक्ष के लिए अप्रत्यक्ष प्रणाली ही रहेगी लागू

उधर, नगर पालिका और नगर परिषद के अध्यक्ष को वापस बुलाने के लिए मतदान कराए जाने की व्यवस्था नहीं रहेगी। इन दोनों पदों के लिए अप्रत्यक्ष प्रणाली ही लागू रहेगी। पार्षद अपने बीच से अध्यक्ष का चुनाव करेंगे। यदि तीन चौथाई पार्षद अविश्वास प्रस्ताव लाते हैं तो अपने बीच से ही दूसरे पार्षद को अध्यक्ष पद के लिए चुनेंगे।