नागदा ।   जब कोई माता-पिता अपने बेटा-बेटी का विवाह करते हैं तो वह देखते हैं कि उनकी पुत्री समझदार हो गई है तो उसका विवाह कर देना चाहिए। जब उनका ही कोई पुत्र अपने मार्ग से भटक गया हो या गैर जिम्मेदार हो तो वही माता-पिता की सोच होती है कि इसका विवाह करवा देना चाहिए। यह बात हिंदू सनातन जागृति मंच के तत्वावधान में चल रही श्रीमद्भागवत कथा के छठे दिन जया किशोरी ने कही। उन्होंने कथा में श्रीकृष्ण जन्म के पश्चात, बाल लीला व प्रसंगों की कथा के बाद कंस वध एवं रासलीला, गोपी लीला, उद्धव संवाद एवं श्रीकृष्ण-रुक्मिणी विवाह का वृत्तांत सुनाया।

विवाह हमेशा सोच-समझकर करना चाहिए

जया किशोरी ने बताया कि अगर लड़का नहीं सुधरा तो आप कन्या का भी जीवन खराब कर देंगे। जब तक युवक एवं युवती दोनों ही समझदार नहीं हो तो उन्हें परस्पर विवाह नहीं करना चाहिए, क्योंकि विवाह एक दिन का बंधन नहीं, अपितु जीवन के 30 से 40 वर्ष किसी व्यक्ति विशेष के साथ निर्वाह करना है। इसलिए विवाह हमेशा सोच समझकर ही करना चाहिए। अगर आपका जीवनसाथी समझदार होगा तो आप कभी अकेला महसूस नहीं करोगे। कथा के अंत में महाआरती का आयोजन किया गया। इस दौरान बड़ी संख्या में महिलाएं व पुरुष उपस्थित थे।