जोहानिसबर्ग । रंगभेद को लेकर दक्षिण अफ्रीका ने लंबी लड़ाई देखी है। यहां के अनुभवी इतिहासकार और राजनीतिक कार्यकर्ता इस्माइल वाडी की एक नई किताब में 1980 के दशक में मुख्यत: दक्षिण जोहानिसबर्ग के लेनेशिया उपनगर में रंगभेद विरोधी संघर्ष में भारतीय युवाओं की भूमिका का दस्तावेजीकरण किया गया है। ‘लायंस ऑफ लेनेशिया’ शीर्षक वाली यह किताब लेनेशिया यूथ लीग (एलवाईएल) की स्थापना की 40वीं वर्षगांठ का प्रतीक है। इसमें उस युग के कई युवाओं की भूमिका का उपयोग किया गया है, जिनमें से कुछ अब लोकतांत्रिक सरकार, व्यवसाय, शिक्षा और पेशेवर क्षेत्र में अग्रणी पदों पर काबिज हैं।
लेनेशिया को 1950 के दशक में उन हजारों भारतीय परिवारों को जबरन बसाने के लिए बनाया गया था, जो दशकों से जोहानिसबर्ग के विभिन्न उपनगरों में रह रहे थे। उनके पूर्वज पहली बार 1860 के दशक में भारत से आए थे। उस समय युवा आंदोलन का हिस्सा रहे भारतीय मूल के लेखक वाडी ने अपनी सेवानिवृत्ति से पहले दक्षिण अफ्रीकी संसद में और गौतेंग प्रांतीय सरकार में परिवहन मंत्री के रूप में कार्य किया। सार्वजनिक कार्यालय में अब भी कार्यरत एलवाईएल नेताओं में दक्षिण अफ्रीकी रिजर्व बैंक के उप गवर्नर कुबेन नायडू, उच्च न्यायालय के न्यायाधीश शरमाइन बाल्टन, अहमद कथराडा फाउंडेशन के कार्यकारी निदेशक नीशान बाल्टन, स्वास्थ्य विज्ञान संकाय के डीन और विट्स विश्वविद्यालय में वैक्सीनोलॉजी के प्रोफेसर शब्बीर माधी और राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष के कार्यवाहक महानिदेशक इस्माइल मोमोनियात शामिल हैं।
वाडी ने कहा, ‘लीग के संस्थापकों को श्रेय देते समय उन्होंने इसके सदस्यों के दक्षिण अफ्रीका में राष्ट्रीय मुक्ति संघर्ष में सक्रिय रूप से शामिल होने के बावजूद उनके शैक्षणिक विकास के महत्व पर बल दिया। इसमें उन्होंने गुमराह करने वाले नारे ‘शिक्षा से पहले मुक्ति’ को स्पष्ट रूप से खारिज कर दिया।’ उन्होंने कहा, ‘युवा 1980 के दशक में मुक्ति संग्राम के पथ प्रदर्शक थे और पुस्तक स्वतंत्रता संग्राम में नई पीढ़ी के योगदान का गुणगान करती है।’ हालांकि एलवाईएल को 1991 में भंग कर दिया गया था और इसकी जगह लेनेशिया में एएनसी यूथ लीग (एएनसीवाईएल) की स्थापना की गई। सदस्यों ने उस अनुभव का उपयोग रंगभेद के बाद दक्षिण अफ्रीका के निर्माण में भाग लेने के लिए किया।