समुद्र में बांध बनाने के बाद सेना सहित प्रभु श्री राम लंका के सुमेरू पर्वत के निकट पहुंच गए. इस जानकारी पर जब रावण की पत्नी महारानी मंदोदरी ने सीता को वापस करने का सुझाव दिया तो रावण ने उनकी बात नहीं मानी और दरबार बुला लिया. दरबार में रावण ने युद्ध की रणनीति के बारे में पूछा तो मंत्रियों ने मनुष्य, वानर और भालुओं का मजाक उड़ाते हुए कहा कि ये सब तो राक्षसों के आहार हैं. इस पर रावण के पुत्र प्रहस्त ने ललकारते हुए कहा कि उस समय सबकी बहादुरी कहां चली गई थी जब एक बंदर ने यहां आकर लंका को जला दिया था. उस समय किसी राक्षस ने क्यों नहीं उस वानर को खा लिया.     

लंकाधिपति रावण की पत्नी मंदोदरी ने उसे कई तरह से समझाने की कोशिश करते हुए कहा कि सीता जी को ससम्मान प्रभु श्री राम को लौटा दीजिए किंतु उसने उनकी कोई बात नहीं सुनी और फिर अपने दरबार में जाकर आकस्मिक सभा बुलाकर मंत्रियों को सारी स्थिति बताई कि वानर और रीछों को लेकर श्री राम उससे युद्ध करने आए हैं, अब सभी लोग बताएं कि शत्रु के साथ किस प्रकार से युद्ध करना है. एक मंत्री उनकी मंशा समझ कर बोला, हे राक्षसों के नाथ सुनिए, ऐसा कौन सा भय है जिसका विचार किया जाए, मनुष्य और वानर-भालू तो हमारी भोजन सामग्री है.
मंत्री की बात सुनकर रावण के पुत्र प्रहस्त ने हाथ जोड़कर प्रणाम करते हुए कहा, हे प्रभु नीति के विरुद्ध कुछ भी नहीं करना चाहिए, इन मंत्री के पास बहुत ही थोड़ी बुद्धि है. ये मूर्ख हैं और मुंह देखी बात कर रहे हैं ताकि आप प्रसन्न हों. इस प्रकार की बातों से कभी पूरा नहीं पड़ता है. उसने कहा हमें इस मामले में गंभीरता से विचार करना चाहिए. एक बंदर समुद्र लांघ कर आया था और उसने जो कुछ भी किया, उसकी याद अभी तक सभी लोग मन ही मन करते हैं. क्या उस समय किसी को भूख नहीं लगी थी, नगर जलाते समय उसे पकड़ कर क्यों नहीं खा लिया. प्रहस्त ने आगे कहा कि इन मंत्रियों ने आपको वही सुझाव दिया है जो आपको सुनने में अच्छा लगे किंतु इसमें आगे चल कर दुख ही पाना होगा.


प्रहस्त ने अपनी बात जारी रखते हुए कहा कि जो मनुष्य खेल खेल में समुद्र पर बांध बनाकर सुमेरू पर्वत पर सेना सहित आ गया, उसे राक्षस मंत्री खाने की बात कह रहे हैं. गाल बजाने से कुछ नहीं होने वाला है. उसने अपने पिता से कहा कि उसे कायर न समझा जाए किंतु संसार में ऐसे बहुत से लोग हैं जो मीठी मीठी बात ही कहते और सुनते हैं. सुनने में कठोर किंतु परम हितकारी वचन कहने वाले लोग बहुत थोड़े ही होते हैं. नीति तो यही कहती है कि पहले अपना दूत भेजिए और फिर सीता को देकर श्री राम से दोस्ती कर लीजिए.

रावण के पुत्र ने अपनी को आगे बढ़ाते हुए कहा कि यदि सीता को पाकर राम लौट जाएं तो व्यर्थ का झगड़ा करने की क्या जरूरत है, और यदि वे ऐसा नहीं करते हैं तो युद्ध भूमि में उनसे डटकर मुकाबला किया जाए. उसने अपने पिता से कहा कि यदि उसका सुझाव माना गया तो पूरे संसार में दोनों ही तरीकों से आपका सुयश होगा.

गोस्वामी तुलसीदास जी ने राम चरित मानस में लिखा कि प्रहस्त की बातें सुनकर रावण को बहुत क्रोध आया, वह गुस्से में बोला कि तुझे ऐसी बुद्धि किसने सिखाई है. तेरे हृदय में अभी से संदेह हो रहा है, तू तो मेरे वंश के अनुकूल ही नहीं है. पिता की कठोर वाणी सुनकर प्रहस्त वहां से सीधे अपने घर की ओर चल पड़ा.