भगवान बुद्ध जेतवन में ठहरे हुए थे। हर सुबह वह भिक्षावृत्ति को निकलते तो उन्हें मार्ग में एक किसान अपने खेत में काम करता मिलता। अपने कार्य के प्रति उसकी निष्ठा देख बुद्ध के मन में उसके लिए करुणा उमड़ी। वह प्रतिदिन वहां रुककर उस किसान को कुछ उपदेश देने लगे। जब उस किसान की फसल तैयार हुई तो उसने संकल्प किया कि वह अपनी फसल का एक हिस्सा भगवान बुद्ध को और भिक्षु संघ को भेंट करेगा। दुर्योगवश उसी रात मूसलाधार वर्षा हुई और उसकी सारी फसल चौपट हो गई। अगले दिन जब भगवान बुद्ध वहां से गुजरे तो उन्होंने किसान को वहां रोता हुआ पाया। पूछने पर किसान उनको सारी घटना सुना कर बोला, ‘‘प्रभु! मुझे दुख अपने नुक्सान का नहीं, वरन इस बात का है कि मैं आपकी सेवा का यह अवसर चूक गया’’  
बुद्ध मुस्कराए और बोले, ‘भंते! मूल्य वस्तुओं का नहीं, भावनाओं का होता है। तुम्हारे हृदय में उमड़ी भावनाएं तो मुझ तक कल ही पहुंच गई थीं। इनके कारण तुम उससे ज्यादा पुण्य के भागी बन गए हो, जितना तुम उस फसल को समर्पित करके बनते। मेरा आशीर्वाद सदा तुम्हारे साथ है’’ किसान की आंखें यह सुनकर नम हो उठीं।