मुंबई । एक बार फिर से इस कानून पर बहस छिड़ गई है। देश में राजद्रोह के कानून को लेकर कई वर्षों लगातार बहस छिड़ी है। हाल ही में महाराष्ट्र सरकार ने सांसद नवनीत राणा और उनके पति रवि राणा के खिलाफ राजद्रोह का मुकदमा दर्ज किया है। इसी बीच राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के प्रमुख शरद पवार का एक बड़ा बयान सामने आया है। एक रिपोर्ट के मुताबिक, पवार ने कोरेगांव भीमा जांच आयोग के समक्ष एक अतिरिक्त हलफनामा दायर कर ‘कानूनी सुधारों’ का सुझाव दिया है। उन्होंने कहा है कि भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 124ए (राजद्रोह) को निरस्त कर दिया जाना चाहिए और इसकी जगह पर सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 66ए को फिर से शामिल करना चाहिए।
शरद पवार ने अपने हलफनामे में यह भी कहा है कि आईपीसी की धारा 124ए का दुरुपयोग अक्सर उनलोगों के खिलाफ किया जाता है, जो सरकार की आलोचना करते हैं। पवार ने कहा है कि जो लोग शांतिपूर्ण और लोकतांत्रिक तरीके से अपनी आवाज उठाते हैं उनकी आवाज इस धारा की आड़ में दबा दी जाती है, लिहाजा इस कानून को निरस्त किया जाना चाहिए। अपने अतिरिक्त हलफनामे में उन्होंने दोहराया है कि उन्हें 1 जनवरी 2018 को पुणे में कोरेगांव-भीमा युद्ध स्मारक पर हुई घटना के लिए जिम्मेदार कारणों के बारे में कोई जानकारी या सूचना नहीं थी। दरअसल, कोरेगांव-भीमा जांच आयोग ने राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी प्रमुख शरद पवार को महाराष्ट्र के पुणे जिले में युद्ध स्मारक पर जनवरी 2018 में हुई हिंसा के संबंध में अपना बयान दर्ज कराने के लिए समन भेजा है। पांच और छह मई को उसके समक्ष पेश होने का निर्देश दिया है। आयोग ने पहले 2020 में पवार को समन भेजा था, लेकिन वह कोरोना वायरस लॉकडाउन के कारण पेश नहीं हो सके थे।
बाद में पवार को इस साल 23 और 24 फरवरी को आयोग के समक्ष पेश होने के लिए कहा गया, लेकिन वरिष्ठ नेता ने यह कहते हुए नयी तारीख मांगी कि वह अपना बयान दर्ज कराने से पहले एक अतिरिक्त हलफनामा दाखिल करना चाहते हैं। हाल ही में यह हलफनामा दाखिल किया गया है। पुणे पुलिस के अनुसार, एक जनवरी 2018 को भीमा-कोरेगांव की 1818 की लड़ाई की 200वीं बरसी के दौरान पुणे जिले में युद्ध स्मारक के समीप जातीय समूहों के बीच हिंसा भड़क उठी थी। इसमें एक व्यक्ति की मौत हो गयी थी और कई अन्य घायल हो गए थे।
भारतीय दंड संहिता की धारा 124ए के अनुसार, जब कोई व्यक्ति बोले गए या लिखित शब्दों, संकेतों या दृश्य प्रतिनिधित्व द्वारा या किसी और तरह से घृणा या अवमानना या उत्तेजित करने का प्रयास करता है या भारत में क़ानून द्वारा स्थापित सरकार के प्रति असंतोष को भड़काने का प्रयास करता है तो वह राजद्रोह का आरोपी है। राजद्रोह एक ग़ैर-जमानती अपराध है। इसमें सज़ा तीन साल से लेकर आजीवन कारावास और जुर्माना है।