मुंबई । जून के अंतिम 10 दिनों में महाविकास अघाड़ी के हाथों से महाराष्ट्र की सत्ता चली गई। इस पूरे सियासी घटनाक्रम के मुख्य चेहरे एकनाथ शिंदे और उद्धव ठाकरे ही रहे। हालांकि, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के प्रमुख शरद पवार की भूमिका पर भी सभी की नजरें थी, लेकिन गुरुवार को शिंदे की मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ के साथ ही इस उम्मीद का भी अंत हो गया। पवार के दावों से लेकर वादे तक सभी असफल साबित हुए। हालात ऐसे बिगड़े कि सत्ता जाते ही आयकर विभाग का नोटिस भी आ गया और अब शिंदे के सहारे भारतीय जनता पार्टी की नजरें राकंपा प्रमुख के गढ़ सतारा पर भी टिक गई हैं। 23 जून, गुरुवार को पवार ने मुंबई में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस की, जहां अपने 'अनुभव' के आधार पर संकट से उबरने का भरोसा जताया। उन्होंने कहा   सीएम उद्धव ठाकरे का समर्थन करने का फैसला किया है। मुझे भरोसा है कि एक बार विधायक मुंबई लौट आएंगे, तो हालात बदल जाएंगे।' उन्होंने कहा था, 'हमने महाराष्ट्र में ऐसे हालत कई बार देखें हैं। मेरे अनुभव से मैं यह कह सकता हूं कि हम इस संकट को हरा देंगे और उद्धव ठाकरे के नेतृत्व में यह सरकार आराम से चलेगी। 26 जून, रविवार को भी पवार ने कहा कि हम अंत समय तक ठाकरे का समर्थन करेंगे। साथ ही उन्होंने यह भी कहा था कि बागी विधायकों के नए गठबंधन की कोई खास महत्व नहीं है। शुरुआत में संकट को शिवसेना का आंतरिक मामला बताने वाले पवार लगातार एनसीपी की बैठकें करते रहे। खबरें आई थी कि उन्होंने दिल्ली का दौरा भी किया है। सत्ता परिवर्तन के अगले ही दिन पवार के पास आयकर विभाग का नोटिस पहुंच गया। साल 2004, 2009, 2014 और 2020 में चुनाव आयोग को दिए गए हलफनामों की जांच के बाद नोटिस जारी किए गए। हालांकि, राकंपा प्रमुख ने इसे 'लव लैटर' बताया है। उन्होंने केंद्र सरकार पर निशाना भी साधा और कहा कि एजेंसी कुछ ही लोगों की जानकारी जुटा रही है।