यह बात जान कर आप सभी को आश्चर्य होगा की ध्वनि तंरगें से भी रोगों के उपाच होते है। यह विश्व जीवों से भरा है। ध्वनि तंरगों की टकराहट से सुक्ष्म जीव मर जाते है, रात्री में सूर्य की पराबैगनी किरणां के अभाव में सूक्ष्म जीव उत्पन्न होते है जो ध्वनि तरगों की टकराहट से मर जाते है। ध्वनि तरगों से जीवों  के मरने की खोज सर्वप्रथम बर्लिन विश्वविधालय में 1928 में हुई थी। शिकागों के डॉ.ब्राइन ने ध्वनि तरगों से जीवों के नष्ट होने की बात सिद्ध की है। आधुनिक वैज्ञानिकों ने सिद्ध किया कि शंख और घण्टा की ध्वनि लहरों से 27 घन फुट प्रति सेकिंड वायु शक्ति वेग से 1200फुट दूरी के बैक्टीरिया नष्ट हो जाते है।    
पूर्व में मंदिरों का निमार्ण गुम्वजाकार होता था दरवाजे छोटे होते थे अन्दर की ध्वनि  बाहर नही निकलती थी, बाहर की ध्वनि अन्दर प्रवेश नही करती थी। मन्दिर में एक ईष्ट देव की प्रतिमा, एक दीपक, एक घण्टा, शंख होता था। यहां कोई भी रोगी श्रद्धा से जाता घण्टा या शंख ध्वनि कर दीप जलता बैठ कर श्रद्धा से प्रार्थना भक्ति करता, मौन ध्यान करता। रोंगों के ठीक होने की कामना करता वह ठीक हो जाता था। इसका बैज्ञानिक कारण घण्टा -शंख  ध्वनि भक्ति प्रार्थना की ध्वनि तंरगें बाहर न जाकर गुम्वजाकार शिखर से टकराकर  शरीर से टकराती जिससे शरीर के रोगाणु नष्ट हो जाते रोग ठीक हो जाते। आज भी पुराने मंदिरों में यह होता है। इसलिये सीमित मात्रा में बोलना ठीक है। ध्वनि ज्यादा मात्रा में प्रदूषण का रूप ले लेती है, जो शारीरिक एवं मानसिक दृष्टि से हानिकारक होती है। मौन रहने में ही सुख एवं सुख मय जीवन है।