कन्यादान:
हिंदू धर्म की शादियों में तमाम रस्मो रिवाज निभाने के बाद विवाह को पूर्ण माना जाता है।
कन्यादान का अर्थ होता है " कन्या का दान"
वास्तव में कन्यादान का अर्थ करने का कन्या का दान नहीं होता है बहुत बड़ी भ्रांति है। कन्यादान का सही अर्थ अपने हिंदू वेदों पुराणों से ही मिलता है।

• कन्यादान का सही अर्थ

यह दान का सही है अपने वेद पुराण श्री कृष्ण के द्वारा मिलता है जब श्री बलराम अर्जुन सुभद्रा के विवाह के विरुद्ध थे तब उन्होंने कहा कि बिना कन्यादान के यह विवाह संपूर्ण नहीं है, कृष्ण कहते हैं कन्या का दान करें ना कि कन्या का दान।

• कन्यादान की शुरुआत

कन्यादान का प्रारंभ प्रजापति दक्ष के द्वारा आरंभ हुआ था। दक्ष ने अपने अनेकों पुत्रियों का विवाह चंद्रदेव से करवाया था तब से यह प्रथा कन्या दान की चली आ रही।

• कन्यादान महादान

कन्यादान को एक महादान और सौभाग्य का सूचक बताया गया है । हिंदू धर्म के अनुसार कन्यादान को माता पिता के लिए स्वर्ग का मार्ग बताया गया है।
दोनों कुटुंब में नया जीवन देता है। हमारे हिंदू धर्म विवाह में कन्या को लक्ष्मी और वर विष्णु के समान माना जाता है।

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• कन्यादान का महत्व

हमारे हिंदू समाज के रूढ़ीवादियों के बीच में कन्यादान एक बहुत महत्वपूर्ण परंपरा है। सनातन धर्म में कन्यादान के बिना विवाह पूर्ण नहीं होती है। जो यह रस्मे माता-पिता के द्वारा ही निभाई जाती है।
इसके साथ भी कन्यादान के बिना सनातन धर्म में विवाह अधूरी होती है। कन्यादान के पश्चात पिता अपने पुत्री की सारी जिम्मेदारी वर के हाथों में सौंप देता है।

• कैसा होता है कन्यादान

सनातन धर्म में विवाह को एक संस्कार माना गया है। विवाह रूपी संस्कार में बहुत से सच में होती हैं और इनमें से कन्यादान एक बहुत महत्वपूर्ण होता है।

जब हिंदू धर्म में जब पिता अपनी पुत्री का हाथ वर के हाथों में सौंपता है तो उसी रस्म को कन्यादान कहा जाता है।

कन्यादान की परंपरा हर घर में अपनी अलग अलग रीति-रिवाजों के साथ होती है।