शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती महाराज रविवार को ब्रह्मलीन हो गए। सूचना मिलते ही छिंदवाड़ा जिले के हजारों अनुयायी शोकाकुल हो गए। दरअसल, शंकराचार्य का जन्म दिघोरी गांव में 2 सितंबर 1924 को हरतालिका तीज के दिन हुआ था। उनका बचपन का नाम पोथीराम था। शंकराचार्य जी के पिता दिघोरी में मालगुजार थे। 5 भाइयों में सबसे छोटे शंकराचार्य जी थे। शंकराचार्य के जन्म के समय छिंदवाड़ा जिले का विस्तार सिवनी तक था, उस समय दिघोरी भी छिंदवाड़ा जिले में सम्मिलित था।

छिंदवाड़ा में रहकर हुए थे संसार से विरक्त

 

शंकराचार्य जी के एक भाई छिंदवाड़ा में पुलिस विभाग में थे। इस कारण वे 9 साल की उम्र से ही वे भाई-भाभी पास छिंदवाड़ा के ऊंट खाना आ गए थे। एक दिन भाभी ने उन्हें अनाज पिसवाने के लिए राम मंदिर के पास आटा चक्की भेजा। खेल-खेल में वे अनाज पिसवाना ही भूल गए। शाम को घर लौटे तो भाभी की डांट के साथ चांटा पड़ गया। इस बात से नाराज होकर स्वामी जी ऊंट थाने के पास स्थित राम मंदिर चले गए। जहां पर करपात्री जी महाराज और अन्य संत समागम में आए हुए थे। यहीं से शंकराचार्य का जीवन परिवर्तित हो गया और वे संतों के साथ बिना किसी से कुछ बोले चले गए। बाद में करपात्री जी महाराज के साथ रहकर उन्होंने दंड दीक्षा ली और यहीं से उनके शंकराचार्य जीवन की यात्रा शुरू हो गई।

हमेशा प्रवचन में छिंदवाड़ा की करते थे चर्चा

 

गुरुजी कई बार छिंदवाड़ा की यात्रा पर आए। वह खुद को छिंदवाड़ा जिले का वासी बताते थे। कई बार वे छिंदवाड़ा आए, जहां उन्होंने धर्मसभा करते हुए सनातन धर्म का प्रचार किया। खासकर वे अमरवाड़ा, छिंदवाड़ा, चौरई में विशेष रूप से अपनी धर्मसभा करते हुए सभी लोगों को सनातन धर्म के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करते थे।

न्यूज़ सोर्स : छिंदवाड़ा में जन्मे थे शंकराचार्य