भोपाल । प्रदेश में बिजली से जहां आम उपभोक्ताओं को चपत लग रही है, वहीं कंपनी के अधिकारी मालामाल हो रहे हैं। यहां कमीशन के फेर में जरूरत से ज्यादा खरीदी कर ली जाती है, फिर उसे गोदामों में रखकर कबाड़ बना दिया जाता है। इन उपकरणों को जब काम में लिया जाता है तो ये जल्दी ही खराब हो जाते हैं। गारंटी खत्म होने की स्थिति में मरम्मत का खर्च सरकार को उठाना पड़ता है। इसी का नतीजा है कि प्रदेश में तीन साल में 1.85 लाख ऐसे ट्रांसफार्मर फेल हुए, जिनकी गारंटी खत्म हो चुकी थी। जबकि इसी दौरान गारंटी पीरियड वाले मात्र 31 हजार ट्रांसफार्मर ही खराब हुए।
 गोदामों में रखे कितने उपकरण और मशीनरी कबाड़ हो चुकी हैं। तब सामने आया था कि इन उपकरणों में कइयों की गारंटी खत्म हो चुकी है या जल्द ही खत्म होने वाली है। उस दौरान इन सामानों की कुल कीमत 500 करोड़ आंकी गई थी। फिर छह बाद जब जानकारी निकाली गई तो स्थिति जस की तस थी। इधर, इतने बड़े पैमने पर इन उपकरणों की खरीदी के पीछे कमीशनखोरी का खेल भी सामने आ रहा है।यहां सवाल यह भी है कि जब पिछली खरीदी के उपकरणों का ही उपयोग नहीं हुआ था तो नई खरीदी क्यों की गई और वह भी कर्ज लेकर।
ट्रांसफार्मर पर तीन साल की गारंटी
हर टांसफार्मर पर तीन साल की गारंटी होती है। अगर उसकी गारंटी पीरियड खत्म हो रही है तो इसका मतलब है कि इसकी खरीदी तीन साल पहले हुई थी। इसी तरह सैकड़ों डिजिटल मीटर भी बेकार हो गए हैं, जिसकी गारंटी साढ़े पांच साल के लिए थी।
सरकार को चूना
प्रदेश में अफसरों की कमीशनखोरी और लापरवाही सरकार को हर साल करोड़ों का चूना लग रहा है। कर्ज लेकर खरीदी, ब्याज का बोझ और उपकरणों की बर्बादी व रखरखाव पर खर्च से नुकसान हो रहा है।