शिवपुरी ।    केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया की बुआ व शिवराज कैबिनेट में मंत्री यशोधरा राजे के शिवपुरी विधानसभा सीट से चुनाव न लड़ने की घोषणा के बाद कांग्रेस ने अपने क्षेत्रीय दिग्गज केपी सिंह को मैदान में उतार दिया है। इससे भाजपा व महल( सिं‍ध‍िया आवास) दोनों की मुश्किलें बढ़ गई हैं। अब कांग्रेस के ‘बादशाह’ के सामने भाजपा को ‘इक्के’ की तलाश है। सिंधिया परिवार के प्रभाव के कारण यहां पर भाजपा की मजबूत दूसरी पंक्ति भी तैयार नहीं हो पाई है।

यह रहा श‍िवपुरी सीट का इतिहास

पिछले 50 वर्ष से या तो सिंधिया परिवार को कोई सदस्य यहां से जीतता रहा है या फिर उनके द्वारा समर्थित उम्मीदवार को जीत का आशीर्वाद मिला है, फिर दल चाहे कांग्रेस हो या भाजपा। ऐसे में अब स्वयं ज्योतिरादित्य सिंधिया के यहां से चुनाव लड़ने की संभावना प्रबल हो रही है। यदि ज्योतिरादित्य सिंधिया यहां से चुनाव नहीं लड़ते हैं तो भाजपा यशोधरा राजे सिंधिया को भी चुनाव लड़ने के लिए मना सकती है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यदि सिंधिया परिवार से कोई चुनाव नहीं लड़ता है तो भाजपा ब्राह्मण या वैश्य को टिकट देकर जातिगत समीकरण के आधार पर संतुलन बनाने का प्रयास कर सकती है।

कुछ ऐसा रहा है इतिहास

शिवपुरी की सीट हमेशा महल से प्रभावित रही है। यहां वर्ष 1967 और 1972 में राजामाता विजयाराजे सिंधिया समर्थित सुशील बहादुर अस्थाना विधायक बने। इसके बाद 1977 में महावीर प्रसाद जैन को जीत मिली। वर्ष 1980 में कांग्रेस की वापसी हुई और माधवराव सिंधिया के करीबी गणेश गौतम लगातार दो बार जीते। 1990 में फिर से सुशील बहादुर अस्थाना को जीत मिली। 1993 में महल समर्थक देवेंद्र जैन जीते। वर्ष 1998 और 2003 का चुनाव यशोधरा राजे सिंधिया ने जीता। इसके बाद वे लोकसभा में चली गईं और 2008 में उन्होंने माखनलाल राठौर को विधायक बनवाया। इस बीच हुए उपचुनाव में ज्योतिरात्दिय सिंधिया ने पूरी ताकत लगाकर वीरेंद्र रघुवंशी को कांग्रेस से जीत दिलाई। 2013 में फिर से यशोधरा राजे की वापसी हुई और लगातार दो चुनाव जीतीं।