भोपाल । विधानसभा चुनाव की आपाधापी के बीच कांग्रेस को भोपाल शहर कांग्रेस अध्यक्ष मोनू सक्सेना हटाकर उनकी जगह भोपाल-दक्षिण पश्चिम विधानसभा सीट पर बतौर कांग्रेस उम्मीदवार दावेदारी कर रहे संजीव सक्सेना के पार्षद भाई प्रवीण सक्सेना को शहर कांग्रेस अध्यक्ष क्यों बनना पड़ा? कांग्रेस के भीतर से ही यह सवाल उठ रहे हैं कि आखिर पार्टी हाईकमान की ऐसी क्या मजबूरी थी कि, कांग्रेस को अचानक भोपाल में संगठनात्मक बदलाव करना पड़ा?
कांग्रेस सूत्रों का कहना है कि भोपाल की दक्षिण-पश्चिम विधानसभा सीट पर मौजूदा विधायक पीसी शर्मा के साथ संजीव सक्सेना भी कांग्रेस से उम्मीदवारी के लिए दावेदारी कर रहे थे। इसकी वजह से इस सीट पर पेंच फंस गया था। इसके बाद जैसे ही पार्टी ने पीसी शर्मा को अपना उम्मीदवार घोषित किया, तो संजीव सक्सेना ने यह ऐलान कर दिया कि यदि कांग्रेस हाईकमान ने दक्षिण-पश्चिम सीट पर अपना फैसला नहीं बदला, तो वे निर्दलीय चुनाव मैदान में कूद जाएंगे और खामियाजे में कांग्रेस को सीट गंवानी पड़ सकती हैं। बताते हैं कि संजीव के इन तेवरों से भोपाल से दिल्ली तक कांग्रेस में हलचल मच गई। दक्षिण-पश्चिम सीट पर बगावत को कैसे रोका जाए और संजीव सक्सेना को साधा जाए, इस पर कांग्रेस में चिंतन-मंथन शुरू हो गया। आखिर में तय हुई रणनीति के तहत  दक्षिण-पश्चिम सीट पर पीसी शर्मा की राह में संजीव सक्सेना रोड़ा न बनेें, इसके लिए भोपाल शहर कांग्रेस अध्यक्ष पद से मोनू सक्सेना को हटाकर, उनकी जगह संजीव के पार्षद भाई प्रवीण सक्सेना को शहर कांग्रेस अध्यक्ष बना दिया गया। राजनीतिक विज्ञानियों का कहना है कि इस तरह से प्रदेश कांग्रेस ने संजीव सक्सेना के छोटे भाई को भोपाल शहर अध्यक्ष पद देकर उनको बगावत करने से तो रोक लिया है। लेकिन दिग्विजय के खास पीसी शर्मा को भोपाल दक्षिण-पश्चिम सीट से टिकट के बदले अपने समर्थक का पद खोना पड़ा है।