भोपाल । शिवपुरी माधव नेशनल पार्क के आसपास स्थित बसाहट को उस समय तक कोई चिंता नहीं है, जब तक नेशनल पार्क में टाइगर की संख्या सीमित रहेगी। लेकिन जब टाइगर की संख्या बढ़ेगी तो पार्क के आसपास बसे परिवारों को वो जगह छोडऩी पड़ेगी, अन्यथा इंसान व बाघों के बीच संघर्ष होने की आशंका बढ़ जाएगी। एक टाइगर को जगल में 20 वर्ग किमी एरिया की जरूरत होती है और यदि इससे कम जगह टाइगर को मिली तो उनमें आपस में संघर्ष होना तय होगा।
गौरतलब है कि शिवपुरी के माधव नेशनल पार्क में बसे गांवों को तो खाली करवा दिया, लेकिन पार्क की सीमा पर बसे गांव व रिहायशी इलाकों में कोई कार्रवाई फिलहाल नहीं की गई। चूंकि पहले चरण में नेशनल पार्क में तीन टाइगर लाए जा रहे हैं, लेकिन उसके बाद पांच टाइगर और लाए जाएंगे। भविष्य में जब टाइगर की संख्या बढ़ेगी और नेशनल पार्क का जंगल कम पडऩे लगेगा तो फिर पार्क प्रबंधन उन स्थानों को चिह्नित करेगा, जो पार्क की सीमा से सटे हुए क्षेत्र हैं। क्योंकि टाइगर को जंगल में एक बड़ा एरिया चाहिए होता है, और वो अपने क्षेत्र में दूसरे टाइगर की दखलंदाजी पसंद नहीं करता है।
शिवपुरी के माधव नेशनल पार्क की सीमा पर कई जगह बसाहट है। जिसमें फक्कड़ कॉलोनी व करौंदी क्षेत्र सबसे अधिक नजदीक हैं। करौंदी में तो कुछ जगह मकान ऐसे बनाए गए हैं, जिसमें पार्क की बाउंड्री को ही एक दीवार बनाकर उसमें मकान बनाए गए हैं। इनमें से कुछ जगह तो मकानों की रजिस्ट्री है, लेकिन अधिकांश जगह पर शासकीय जमीन घेरकर उस पर मकान बनाए गए हैं।
नेशनल पार्क के सीसीएफ ने बताया कि प्रदेश ही नहीं देश में यह स्थिति बनी हुई है, जहां टाइगर हैं। पन्ना में तो शहर से 3-4 किमी की दूरी पर टाइगर घूम रहे हैं। बफर में जो गांव हैं, वहां पर जिन रास्तों से होकर लोग निकलते हैं, वहीं से आधा घंटे बाद टाइगर निकलता है। पेंच व बांधवगढ़ व महाराष्ट्र के पड़ोरा में भी यह स्थिति बनी हुई है तथा वहां जगह कम होने की वजह से टाइगर रिहायशी इलाकों तक पहुंच रहे हैं।
माधव नेशनल पार्क के नजदीकी गांव सहित शहरी सीमा से लगे एरिया की लिस्ट पहले ही शिवपुरी के रजिस्ट्रार कार्यालय में चिपकाई जा चुकी है। जिसमें स्पष्ट उल्लेख किया गया है कि उक्त क्षेत्रों की जमीनों की रजिस्ट्री न की जाए। यानि उक्त क्षेत्रों में रहने वाले लोग न तो अपनी जमीन बेच सकते हैं और न ही कोई दूसरा व्यक्ति वहां पर जमीन खरीद सकता है। लिस्ट चस्पा होने के बाद उक्त क्षेत्रों में रहने वाले लोग आशंकित हैं कि उन्हें कभी भी हटाया जा सकता है।