कराची । पाकिस्तान में कराची पुलिस मुख्यालय को आतंकी संगठन तहरीक-ए-तालिबान(टीटीपी) ने निशाना बनाया है। 20 दिनों में यह दूसरा मौका है, जब किसी सुरक्षा प्रतिष्ठान पर आतंकी हमला किया गया है। इससे पहले आतंकियों ने सैन्य मुख्यालय पेशावर को निशाना बनाया था। टीटीपी के बढ़ते हमलों ने पाकिस्तान सरकार की चिंता बढ़ा दी है। 
टीटीपी कुछ समय पहले तक महज खैबर पख्तूनख्वा प्रांत तक ही सीमित था,  लेकिन हाल के दिनों में इसका विस्तार होने लगा है। तालिबान के अफगानिस्तान की सत्ता पर कब्जा करने के बाद उसका विस्तार सिंध में लेकर कराची समेत लगभग पूरे पाकिस्तान में फैल चुका है। कराची में जहां हमला हुआ, वह अतिसुरक्षित इलाका माना जाता है। अमेरिका के अफगानिस्तान से जाते समय छोड़े गए आधुनिक हथियार टीटीपी के मददगार हैं। इनसे निपटना पाकिस्तानी बलों के लिए मुश्किल है। 
बढ़ते आतंकी हमलों से डर है कि कहीं परमाणु बम में इस्तेमाल होने वाला रिच यूरेनियम टीटीपी जैसे संगठनों के हाथ न लग जाए। अगर ऐसा हुआ तो अफगानिस्तान से भी ज्यादा अराजक स्थिति पाकिस्तान में पैदा हो जाएगी। पाकिस्तान सरकार के सामने सबसे बड़ी बड़ी चुनौती है कि वह अपने परमाणु जखीरे को कैसे सुरक्षित करे। पाकिस्तान में राजनीतिक अस्थिरता ने आतंकी गतिविधियों को आगे बढ़ने में मदद कर रही हैं। फिलहाल किसी भी स्तर पर देश को आगे ले जाने वाला नेतृत्व नहीं बचा है। इमरान सरकार को हटाकर सत्ता में लौटे प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ का ही देश में विरोध हो रहा है। इमरान खान लोकप्रिय हैं, लेकिन उनकी अनुभवहीनता राजनीति पर भारी पड़ रही है। उनको लेकर सेना की नापसंदगी भी सामने आई है। उनके बाद देश में कोई नेता ऐसा नहीं है, जिसकी आवाज का जनता पर असर दिखाई दे। धार्मिक तौर पर भी यही स्थिति है। कोई भी धार्मिक नेता ऐसा नहीं है, जिसकी अपील का जनता के बीच असर हो। 
सेना तो और भी बेहाल है। उसकी लोकप्रियता इतिहास के सबसे निचले स्तर पर जा पहुंची है। कुल मिलाकर पाक नेतृत्वविहीन हो गया है। हालात पूरी तरह से बेकाबू हो चुके हैं। पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ मान चुके हैं कि देश दिवालिया हो चुका है। देश को कर्ज देने वाले नहीं मिल रहे हैं। आईएमएफ पीछे हट गया है। देश में 80 अरब डॉलर का आयात है। जबकि महज 30 अरब डॉलर की चीजें ही निर्यात होती हैं। राहत देने वाले प्रवासी पाकिस्तानी भी अब पैसा नहीं भेज पा रहे हैं, क्योंकि कोरोना में एक बड़े वर्ग को अरब देशों से काम छोड़कर लौटना पड़ा है।
पाकिस्तान की सेना इस्लामीकरण के रास्ते पर चल पड़ी है। सेना में जिहादी मानसिकता तेजी से पनप रही है। सेना ने ही टीटीपी, अल-कायदा जैसे आतंकी संगठनों को खड़ा किया है। सरकार के साथ मिलकर उनके लिए हजारों मदरसे खोले। आज इन्हीं से निकलकर आतंकी वारदातों को अंजाम दे रहे हैं। जमात-ए-इस्लामी जैसे कट्‌टरपंथी संगठन सेना को कट्‌टर इस्लामिक बनाने पर तुले हैं। विशेषज्ञ मानते हैं कि अफगानिस्तान में तालिबान के समर्थन की नीति पाकिस्तान में सुरक्षा की चरमराती स्थिति की वजह है। इमरान सरकार के दौर में अफगानिस्तान में टीटीपी के सैकड़ों कैदियों की रिहाई, 5000 टीटीपी लड़ाकों को पाकिस्तान में बसाने के लिए लाना गलत निर्णय साबित हुआ है। यह कहीं न कहीं पाकिस्तान की शांति से समझौता करने वाला कदम साबित हुआ।