विष्णु जी के अवतार प्रभु श्री परशुराम का क्रोध कितना विकराल था, यह पूरा जगत जानता है, फिर भी उन्होंने अपने क्रोध को कंट्रोल किया तथा भगवान महादेव के अनन्य भक्त प्रभु श्री राम से मिलने के पश्चात् उनके चरणों में अपना क्रोध समर्पित कर दिया तथा पश्चाताप करने निकल पड़े।


वही गुस्सा कभी भी अच्छा नहीं होता है। बोला जाता है कि गुस्सा करते वक़्त किसी भी व्यक्ति का विवेक ख़त्म हो जाता है तथा विवेकहीन पुरुष को पशु के समान व्यवहार करने लगता है। प्रथमतः तो क्रोध करना ही नहीं चाहिए और अगर क्रोध में कभी कोई गलत काम हो जाए या किसी दूसरे के लिए गलत बात मुंह से निकल जाए तो पश्चाताप करते हुए अपनी गलती की क्षमा मांग लेनी चाहिए।

परशुराम जी शिव जी के परम उपासक होने की वजह से ही उन्हें रुद्र शक्ति भी कहा जाता है। वह अपने माता-पिता के उपासक एवं आज्ञाकारी थे। पिता ऋषि जमदग्नि की हत्या राजा सहस्त्रार्जुन के पुत्रों द्वारा किए जाने से क्रोधित हो कर भगवान परशुराम ने इस धरती को 21 बार क्षत्रियों से विहीन कर दिया था। इसी प्रकार श्री राम द्वारा भगवान महादेव का धनुष तोड़े जाने पर वह इतना क्रोधित हुए कि अपनी प्रबल इच्छा शक्ति से तुरंत ही जनकपुर में पहुंच गए, जहां श्रीराम ने धनुष तोड़ा था। इस बात पर श्री राम के भाई लक्ष्मण जी से उनकी लंबी बहस भी हुई, किंतु इस बहस के चलते श्रीराम धीरज से दोनों का संवाद सुनते रहे। श्रीराम के धीरज से वह इतना ज्यादा प्रभावित हुए कि अपने क्रोध को श्रीराम के चरणों में समर्पित कर दिया तथा कभी क्रोध न करने की प्रतिज्ञा लेते हुए अंतर्ध्यान हो गए। बैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया को उनकी जयंती मनाई जाती है। इसे आखा तीज भी बोलते हैं तथा इसी दिन भगवान परशुराम का अवतरण हुआ था। इस दिन हवन पूजन और दान आदि करना चाहिए।