भोपाल । लंबा संघर्ष करके मप्र के 80 हजार अध्यापक, नवीन संवर्ग में शिक्षक तो बन गए परंतु उनकी क्रमोन्नति की नोट शीट वरिष्ठ अधिकारियों के लिए फुटबॉल बन गई है। मंत्रालय से लेकर सचिवालय तक पिछले 3 साल से हर अधिकारी उसे अगले अधिकारी की तरफ पास कर रहा है। सामान्य प्रशासन विभाग के नियम अनुसार किसी भी कर्मचारी को नियोक्ता (नियुक्त करने वाला अधिकारी) ही क्रमोन्नति या समयमान वेतनमान का लाभ दे सकता है। यह व्यवस्था सभी विभागों में लागू है पर वर्ष 2014 में स्कूल शिक्षा विभाग के आला अधिकारियों ने क्रमोन्नति को लेकर होने वाली कानूनी झंझट से बचने के लिए अपने अधिकार कनिष्ठ अधिकारियों को सौंप दिए थे। यही निर्णय आज 80 हजार शिक्षकों को भारी पड़ रहा है।
विधानसभा में विधायक मेवाराम जाटव ने जब शिक्षकों को क्रमोन्नति देने के प्रस्ताव की जानकारी मांगी, तो स्कूल शिक्षा राज्यमंत्री इंदरसिंह परमार ने लिखित जवाब में कहा कि प्रस्ताव विचाराधीन है। जबकि हकीकत यह है कि प्रदेश के 80 हजार शिक्षकों को क्रमोन्नति देनी है या समयमान वेतनमान, स्कूल शिक्षा विभाग के अधिकारी पांच साल में तय नहीं कर पाए हैं। यह प्रस्ताव वर्ष 2018 से मंत्रालय और लोक शिक्षण संचालनालय के बीच घूम रहा है। शिक्षक इस रवैये को लेकर नाराज हैं क्योंकि इससे उन्हें आर्थिक नुकसान हो रहा है।
वित्त विभाग की अनुशंसा का इंतजार
 शिक्षकों को क्रमोन्नति देने की नोटशीट पौने तीन साल मंत्रालय में स्कूल शिक्षा, सामान्य प्रशासन, वित्त विभाग के अधिकारियों के बीच घूमती रही। अधिकारियों को तब समझ आया कि अब क्रमोन्नति नहीं समयमान वेतनमान दिया जाना है और मई 2022 में लोक शिक्षण संचालनालय से चौथी बार प्रस्ताव में संशोधन करने को कहा गया। यह प्रस्ताव भी करीब 11 महीने से मंत्रालय में घूम रहा है। सूत्र बताते हैं कि प्रस्ताव पर अब भी वित्त विभाग की अनुशंसा का इंतजार है। फिर इसे सामान्य प्रशासन विभाग को भेजा जाएगा। प्रदेश में दो लाख 87 हजार शिक्षक (अध्यापक से शिक्षक बने) हैं, जो शिक्षक वर्ष 2006 में नियुक्त हुए थे। उनकी 12 साल की सेवा वर्ष 2018 में पूरी हो गई। इसी के साथ वे क्रमोन्नति या समयमान वेतनमान के लिए पात्र हो गए। तभी से क्रमोन्नति की मांग की जा रही है, पर सरकार निर्णय ही नहीं ले पा रही है। पौने तीन साल में करीब चार बार क्रमोन्नति की नोटशीट सामान्य प्रशासन विभाग के अधिकारियों के हाथों से गुजरी, पर मई 2022 में विभाग के एक अधिकारी ने पकड़ा कि प्रस्ताव ही गलत है। दरअसल, प्रदेश में वर्ष 2006 से समयमान वेतनमान दिए जाने का प्रविधान है और अधिकारी क्रमोन्नति का प्रस्ताव दे रहे हैं। तब प्रस्ताव बदलने को कहा गया।
12, 24 और 30 साल में क्रमोन्नति
वर्तमान अधिकारी भी चाहते हैं कि वर्ष 2014 की ही व्यवस्था लागू रहे और शासन इसके लिए तैयार नहीं है। इसी मुद्दे पर सहमति बनाने के लिए तीन साल से नोटशीट घूम रही है। उल्लेखनीय है कि शिक्षकों को 12, 24 और 30 साल में क्रमोन्नति दी जाती है। वर्ष 2006 में नियुक्त शिक्षक वर्ष 2018 में पहली क्रमोन्नति के लिए पात्र हो चुके हैं।  स्कूल शिक्षा विभाग में पुराने संवर्ग के व्याख्याता की नियुक्ति आयुक्त लोक शिक्षण, उच्च श्रेणी शिक्षक की संभागीय संयुक्त संचालक व सहायक शिक्षक की जिला शिक्षा अधिकारी ने की है। यही फार्मूला क्रमोन्नति पर लागू होता है, पर अधिकारियों ने वर्ष 2014 में इस व्यवस्था को ही पलट दिया। आयुक्त ने अपने अधिकार संभागीय संयुक्त संचालक और संभागीय संयुक्त संचालक ने जिला शिक्षा अधिकारी को सौंप दिए। यानी नियुक्ति भले ही आयुक्त ने की हो, पर व्याख्याता संवर्ग को अन्य लाभ देने की जिम्मेदारी संभागीय संयुक्त संचालक निभाएंगे और उच्च श्रेणी शिक्षक व सहायक शिक्षक की नियुक्ति की जिला शिक्षा अधिकारी।