नई दिल्ली । कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) की सरकारों की उपलब्धियों का बखान किया, वहीं मौजूदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सरकार की खामियां भी गिना दी। संसद भवन के केंद्रीय कक्ष में हुई कांग्रेस संसदीय दल (सीपीपी) की बैठक में सोनिया ने मनरेगा, खाद्य सुरक्षा कानून, गुटनिरपेक्षता की नीति का जिक्र करते हुए कांग्रेस सरकारों की पीठ थपथपाकर दावा किया कि मोदी सरकार में जांच एजेंसियों के दुरुपयोग से विपक्षी दलों को दबाया जा रहा है। सोनिया ने कहा कि बीजेपी जानबूझकर देश का सामाजिक-सांप्रदायिक सौहार्द्र खत्म कर रही है। सोनिया गांधी ने कांग्रेस संगठन की कमजोरी पर भी चिंता जताकर कहा कि पार्टी की मजबूती समाज और लोकतंत्र के लिए जरूरी है। कुल मिलाकर कहें, तब सोनिया ने समस्याओं का भरपूर जिक्र किया, लेकिन कोई समाधान पेश नहीं कर सकीं। बात कांग्रेस को मजबूत करने की हो या फिर बीजेपी की कथित मनमानी पर लगाम लगाने की, क्या और कैसे किया जाए, सोनिया कोई रोडमैप नहीं दे सकीं।
सोनिया गांधी ने कहा, हमारा फिर से मजबूत होना सिर्फ हमारे लिए ही महत्वपूर्ण नहीं है, बल्कि यह हमारे लोकतंत्र और समाज के लिए भी जरूरी है। बैठक में पूर्व पीएम मनमोहन सिंह, कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी, राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे, लोकसभा में पार्टी के नेता अधीर रंजन चौधरी और कई अन्य सांसद शामिल हुए। सोनिया ने कहा कि पिछले दिनों हुए विधानसभा चुनावों में हार से कांग्रेस नेताओं में किस हद तक मायूसी है, उन्हें इसका अंदाजा है। लेकिन, इस मायूसी को उत्साह में कैसे बदला जाए, इसके लिए सोनिया के पास कोई खाका नहीं है। उन्होंने सिर्फ इतना कहा कि चिंतन शिविर आयोजित किया जाना चाहिए। भला चिंतन शिविर की उपलब्धियां किसे पता नहीं हैं? चिंतन शिविर में क्या होता है, किसे पता नहीं है? सोनिया कांग्रेस की लीडर हैं। लीडर का काम होता है कि वहां पार्टी को रास्ता दिखाए, लेकिन वहां कहती हैं कि पार्टी जो भी कहेगी, वहां करने को तैयार हैं। सोनिया गांधी ने कहा, 'आगे रास्ता और भी चुनौतीपूर्ण है। हमारे समर्पण, लचीलेपन की भावना और प्रतिबद्धता की परीक्षा है। हमारे व्यापक संगठन के हर स्तर पर एकजुटता जरूरी है। इसे सुनिश्चित करने के लिए जो भी जरूरी होगा, वह करने के लिए मैं प्रतिबद्ध हूं।' सोनिया की प्रतिबद्धता पर सवाल नहीं है, सवाल है नई चुनौतियों से निपटने के लिए पुराना ढर्रा छोड़कर नए आइडियाज पर काम करने का। क्या सोनिया के पास कोई आइडिया है? अगर है तो अतीत की उपलब्धियों की बखान करके संतोष कर लेना कहां की होशियारी है? नहेरू की गुटनिरपेक्ष नीति से मनमोहन के मनरेगा तक की उपलब्धियों को कोई नकार नहीं सकता, लेकिन क्या इसे दोहराते रहने भर से छिटक रहे मतदाता वापस कांग्रेस का रुख कर लेंगे?