भोपाल । मध्यप्रदेश में सत्तारुढ़ भारतीय जनता पार्टी और मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस को विधानसभा चुनाव में चुनौती पेश करने का दावा करने वाली आम आदमी पार्टी अब हाथ टेकती सी नजर आ रही है। प्रदेश की 230 में से अब तक सिर्फ 70 सीटों पर पार्टी ने अपने उम्मीदवारों का ऐलान किया है और अब पार्टी इन्हीं पर चुनाव लड़ेगी, यानी बाकी सीटों पर पार्टी ने मैदान छोड़ दिया है। हास्यास्पद स्थिति यह है कि इनमें से भी 4 उम्मीदवार आप का साथ छोडक़र फिर से कांग्रेस का हाथ थाम चुके हैं।
मध्यप्रदेश में जब चुनाव अभियान की शुरूआत हुई थी तब आम आदमी पार्टी को यह आस थी कि मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस राष्ट्रीय स्तर पर हुए गठबंधन धर्म को निभाते हुए कम से कम 50 विधानसभा सीटें उसे लडऩे के लिए देगी। जब कांग्रेस उम्मीदवारों की सूची जारी होना शुरू हुई और सभी 230 सीटों पर कांग्रेस ने अपने उम्मीदवार उतार दिए तो आम आदमी पार्टी की आस टूट गई। राजनीतिक विशलेषकों का मानना है कि इससे गठबंधन को तो झटका लगा ही, आम आदमी पार्टी भी झटका खा गई। इसके बाद पार्टी ने कुछ उम्मीदवारों की सूचियां जारी कीं और आंकड़ा 70 सीटों तक ही पहुंच पाया। जबकि पहले पार्टी भी कह रही थी कि अगर कांग्रेस गठबंधन धर्म नहीं निभाएगी तो हम भाजपा और कांग्रेस के समक्ष सभी 230 सीटों पर उम्मीदवार खड़े करके बड़ी चुनौती पेश करेंगे। लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हो पाया। कांग्रेस से आए चार बागी नेता आम आदमी पार्टी का टिकट मिलने के बाद कांग्रेस में वापसी कर गए।
2018 के विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी मध्यप्रदेश में 230 में से 218 सीटों पर चुनाव लड़ी थी और उसे 1.2 प्रतिशत वोट ही मिले थे। लेकिन नगरीय निकाल चुनाव में पार्टी के अच्छे प्रदर्शन को देखते हुए इस बार विधानसभा चुनाव में उत्साही दावे किए जा रहे थे। लेकिन इन दावों की अब पोल खुलती नजर आ रही है। हालांकि पार्टी के नेताओं का कहना है कि हम भले ही मध्यप्रदेश में कम सीटों पर लड़ेंगे, लेकिन पूरी ताकत से लड़ेंगे।
पार्टी सूत्रों की मानें तो पार्टी के राष्ट्रीय स्तर के कई नेताओं की गिरफ्तारी और छापेमार कार्रवाई से पार्टी कमजोर पड़ रही है, जिसके कारण पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों में पार्टी की जो रणनीति थी वह बदल रही है। पार्टी जिन तीखे तेवरों के साथ हर राज्य में चुनाव की तैयारी कर रही थी अब पार्टी का शीर्ष नेतृत्व उससे पीछे हट रहा है। दूसरी ओर यह भी बताया जा रहा है कि पार्टी पर लगातार हो रहे हमलों को देखते हुए पार्टी के कई फाइनेंसर्स भी पीछे हट गए हैं, जिसके चलते पार्टी के पास चुनाव में  खर्च करने के लिए फंड की भी कमी आ गई है।
केंद्र की भाजपा सरकार के खिलाफ बने विपक्षी दलों के गठबंधन में आम आदमी पार्टी सहित अन्य पार्टियों ने राज्य स्तर पर भी सीट शेयरिंग की मांग रखी थी, लेकिन बताया जा रहा है कि गठबंधन के बड़े नेताओं ने कहा है कि हमारा मकसद राज्यों में लड़ाई लडऩा नहीं, बल्कि अगले साल लोकसभा चुनावों में एकजुट होकर भाजपा को हराना है। इसलिए भी कांग्रेस की सलाह है कि आम आदमी पार्टी ज्यादा सीटों पर चुनाव लडक़र वोट न काटे, क्योंकि इसका फायदा भाजपा को मिल सकता है।