याद कीजिए नब्बे का दशक। अयोध्या में हजारों कारसेवकों पर गोलियां चलाई गई। कांग्रेस चुप रही। समाजवादी पार्टी की उत्तर प्रदेश में सरकार थी, कांग्रेस समर्थन में थी। उसके सालों बाद कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी की शह पर यूपीए सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दायर करके राम के अस्तित्व को ही मानने से इंकार कर दिया था। रामसेतु का केस चल रहा था और केंद्र सरकार भगवान राम के अस्तित्व पर सवाल उठा रही थी। 

कांग्रेस का तुष्टिकरण से मोह भंग! 
अब पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव हैं, तो कांग्रेस को अपनी तुष्टिकरण की नीति पर भरोसा नहीं रह गया है। मुस्लिम मतदाताओं का रूझान स्थानीय नेताओं और क्षेत्रीय दलों पर अधिक दिख रहा है। इसलिए कांग्रेस हिंदू वोट बैंक को रिझाने के लिए अब भगवान श्रीराम पर भरोसा कर रही है। सनातन धर्म के कई मंदिरों में कांग्रेस नेता अब सिर झुकाते दिखाई दे रहे हैं। मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ और दिग्विजय सिंह समय-समय पर खुद को सनातनी हिंदू साबित करने में लगे हैं। तभी तो उज्जैन में कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी के दामाद रॉबर्ट वाड्रा को महाकाल मंदिर में देखा गया। 

मुस्लिम मतदाताओं का कांग्रेस से हो रहा है मोह भंग 

लोगों का कहना है कि कांग्रेस नेताओं ने दशकों तक मुस्लिम तुष्टिकरण की नीति अपनाई है। मुस्लिमों को केवल वोट बैंक के रूप में ही देखा है। इस बात को अब मुस्लिम मतदाताओं ने भी समझना शुरू कर दिया है। बीते दशक से शिक्षा की बेहतर व्यवस्था हुई है। हर वर्ग के लोग अब अपने बच्चों को पढाने लगे हैं। ऐसे में कांग्रेस की सियासी सोच को हर कोई जान रहा है। कई मुस्लिम सामाजिक कार्यकर्ताओं का कहना है कि दशकों तक राम और रहीम को मानने वाले के बीच कांग्रेस सहित कुछ राजनीतिक दलों ने केवल राजनीतिक लाभ के लिए बयानबाजी की है। सरकार सबको साथ लेकर काम करती है। बीते दशक में डबल इंजन की सरकार ने योजनाएं शुरू की है, वह धर्म और जाति को देखकर नहीं किया गया है। सभी को इसका लाभ मिला है।